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पराली को खाद बनाने के लिए दिल्ली सरकार फ़्री में पूसा इंस्टिट्यूट द्वारा बनाए घोल का छिड़काव करेगी : अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अंदर किसानों को पराली जलाने की जगह पूसा इंस्टीट्यूटी द्वारा तैयार किए गए कैप्सूल से बने घोल का अपने खेत में छिड़काव करने का विकल्प दिया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार पूसा इंस्टीट्यूट द्वारा बनाए कैप्सूल से घोल बनवा कर पराली को खाद में बदलने के लिए किसानों के खेतों में खुद छिड़काव करेगी। दिल्ली सरकार, दिल्ली के एक-एक किसान के पास जाएगी और उनसे खेत में घोल के छिड़कने की अनुमति मांगेगी, जो किसान तैयार होंगे, उनके खेत में निशुल्क छिड़काव किया जाएगा। सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार, 5 अक्टूबर से पूसा इंस्टीट्यूटी की निगरानी में कैप्सूल से घोल तैयार कराएगी, इस घोल को तैयार करने में करीब 20 लाख रुपए की लागत आएगी। उन्होंने कहा कि कोराना के समय में पराली जलने से होने वाला प्रदूषण किसानों, शहर के लोगों और ग्रामीणों समेत सभी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए मैंने केंद्र सरकार से भी पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह अन्य राज्य सरकारों को भी जितना हो सके, इसी साल से इसको लागू करने की अपील करें।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा कि कल से अक्टूबर का महीना शुरू हो रहा है। हम जानते हैं कि इस दौरान हर साल पराली के जलने से उठने वाले धुएं की वजह से पूरा उत्तर भारत परेशान होता है। दिल्ली में शहरों में तो शहर धुंआ आता ही है, लेकिन मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा धुंआ तो उन किसानों को भुगतना पड़ता है, जो अपनी फसल जलाने के लिए मजबूर होते हैं। उस गांव के लोगों को भुगतना पड़ता है, जिस गांव के अंदर किसान अपनी फसलें जलाने के लिए मजबूर होते हैं। इस वक्त कोरोना का समय है, कोराना के समय में प्रदूषण किसानों के लिए, शहर के लोगों के लिए, गांव के लोगों के लिए और सभी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। सभी जिम्मेदार सरकारों का यह फर्ज बनता है कि वह अपने किसानों को एक वैकल्पिक व्यवस्था दे, ताकि किसानों को फसल जलाने की जरूरत न पड़े।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि खुशी की बात यह है कि इस साल पूसा रिसर्च इंस्टिट्यूट, जो हमारे देश का सबसे बड़ा खेती में रिसर्च करने वाला इंस्टीट्यूट है, उन्होंने हमें इसका हमें एक समाधान दिया है। उन्होंने इसका बहुत ही सस्ता समाधान दिया है। उन्होंने एक कैप्सूल बनाया है, एक हेक्टेयर खेत में अगर उनके चार कैप्सूल गुड़ और बेसन के घोल में मिलाकर छिड़क दिए जाएं तो खेत में पराली का जो डंठल होता है, वह काफी मजबूत होता है, वह गल जाता है और उससे खाद बन जाती है।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इस बार थोड़ी देर हो चुकी है। 15 अक्टूबर से किसानों को अगली फसल की तैयारी करनी है, किसान 15 अक्टूबर से ही खेत में खड़ी पराली में आग लगना शुरू करते हैं। दिल्ली सरकार ने यह तय किया है कि अगर हम यह कैप्सूल किसानों को बांटते और किसानों को कहते कि आप अपना-अपना घोल बनाकर, अपने-अपने खेत में छिड़क लीजिए, इसके लिए इस बार इतना समय ही नहीं था। हम अपनी मशीनरी से सारा घोल बांटते, उन्हें प्रशिक्षण देते, उन्हें सिखाते और कैप्सूल से घोल बनाने में ही एक हफ्ते से 10 दिन लग जाते हैं। इसलिए दिल्ली सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। वह निर्णय यह है कि पूसा इंस्टीट्यूटी की निगरानी में कैप्सूल से यह घोल दिल्ली सरकार खुद बनाएगी। हमने इसका सारा इंतजाम कर लिया है। पूसा इंस्टीट्यूट की निगरानी में 5 अक्टूबर से यह घोल बनाना शुरू किया जाएगा।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के अंदर करीब 800 हेक्टेयर जमीन है, जहां पर गैर बासमती चावल उगाया जाता है, जहां पर उसके बाद यह पराली निकलती है और पराली को जलाने की नौबत आती है। 800 हेक्टेयर इस जमीन के लिए पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट की निगरानी में 5 अक्टूबर से इस गोल को बनाने की तैयारी शुरू की जाएगी और हमें उम्मीद है कि 12-13 अक्टूबर के आसपास यह घोल बनकर तैयार हो जाएगा और 12 से 13 अक्टूबर से हम दिल्ली के उन सभी किसानों के घर जाएंगे। दिल्ली सरकार किसानों के पास जाएगी और उनसे पूछेगी कि क्या आप अपने खेत में इसका छिड़काव करवाना चाहते हैं। जो किसान अपने खेत में इसका छिड़काव करवाने की मंजूरी देंगे, दिल्ली सरकार खुद अपने ट्रैक्टर किराए पर करके हर किसान के यहां फ्री उसका छिड़काव करके आएंगे। घोल का छिड़काव करने के 15 से 20 दिन के अंदर पराली का डंठल गल कर खाद में बदल जाएगा।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पूसा रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि डंठल के खाद में बदलने के बाद खेत में उगाई जाने वाली अगली फसल में खाद भी कम लगेगा और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। साथ ही उस खेत में फसल की अधिक पैदावार भी बढ़ेगी। जिस पराली को किसान जलाया करते थे, उसे जलाने की वजह से जमीन के अंदर जो उपयोगी बैक्टीरिया होते थे, वह जल जाया करते थे, इससे खेत की मिट्टी को भी नुकसान होता था। लेकिन कैप्सूल के घोल का खेत में छिड़काव करने से किसानों को फायदा होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूरी दिल्ली के अंदर से इसे लागू करने में इसकी लागत करीब 20 लाख रुपए से भी कम आ रही है। हमने दिल्ली के अंदर इसका पूरा इंतजाम कर दिया है। मैं उम्मीद करता हूं कि आसपास के राज्यों में भी जितना भी हो सकेगा, उतना इसको इस साल लागू करने की कोशिश की जाएगी। इस बारे में मैंने केंद्र सरकार से भी पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह राज्य सरकारों को भी जितना हो सके, इसको इसी साल से लागू कने की अपील करें।

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