धर्म-कर्म

सभी तीर्थों का पुण्य लाभ देते हैं अनादिकल्पेश्वर महादेव

उज्जैन के महाकाल परिसर में स्थित अनादिकल्पेश्वर महादेव 84 महादेवों में पांचवें महादेव हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पूर्वकाल में कोई सृष्टि नहीं थी। इस लिंग से सारा चर-अचर संसार उत्पन्न होता है और इसी में लीन हो जाता है। इस लिंग के क्षोभ से ब्रह्माण्ड उत्पन्न होता है। उसी में ब्रह्मरूप से वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है। विष्णुरूप से रक्षा करता है और रुद्ररूप से संहार करता है। वह प्रत्येक कल्प में अनादि है। इसलिए देवता, पितर और सिद्ध इसे अनादि कल्पेश्वर कहते हैं।
एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हो गया कि उनमें बड़ा कौन है? तब आकाशवाणी हुई कि महाकाल वन में कल्पेश्वर नाम का लिंग है उनका आदि या अन्त जो जान लेगा वह बड़ा है। यह सुनकर ब्रह्मा ऊपर की ओर तथा विष्णु नीचे की ओर उस लिंग का आदि अंत देखने गए। उन्हें उस लिंग का आदि अथवा अंत नहीं दिखा। इसलिए वह लिंग अनादिकल्पेश्वर कहलाया। सब तीर्थों में अभिषेक करने से जो पुण्य लाभ होता है वह अनादिकल्पेश्वर के दर्शन मात्र से होता है। इसके बाद विष्णु और ब्रह्मा उस लिंग के बायें एवं दायें भाग में क्रम से स्थित हो गए। इस शिवलिंग का दर्शन न करने वाले का जन्म निरर्थक ही जाता है।

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