धर्म-कर्म

सभी मनोरथ पूरे करते हैं स्वर्ण जालेश्वर महादेव

उज्जैन में रामसीढ़ी के समीप 84 महादेवों में से छठे नम्बर के महादेव स्वर्ण जालेश्वर महादेव के रूप में विराज मान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय शिव पार्वती को रमण करते सौ वर्ष हो गए। परन्तु तारकासुर को मारने के लिए उनके कोई पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। तब देवताओं ने अग्नि को शिव के पास विनती करने भेजा। उस समय शिवजी ने रति बाधा के कारण अपना वीर्य अग्नि के मुख में डाल दिया। उसका दाह सहन न करने के कारण अग्नि ने उस वीर्य को गंगा में डाल दिया। फिर भी शेष वीर्य के कारण अग्नि से उत्पन्न कार्तिकेय स्वर्ण के समान देदीप्यमान हो गया। उसे पाने के लिए देव, दानव, गन्धर्व आदि आपस में लडऩे लगे। उस युद्ध के कारण पृथ्वी कांप उठी। तब बालखिल्य आदि ऋषि और इन्द्र आदि देवता बृहस्पति को आगे कर ब्रह्मा के पास गए। शिवजी ने जान लिया कि अग्नि के पुत्र के कारण यह सर्वनाश हुआ है। वह ब्रह्महत्या का दोषी है। इसलिए उसे छेदन, दहन और घर्षण की पीड़ा भुगतना पड़ती है। अग्नि भी अपने पुत्र के साथ शिव की शरण में आई। अग्नि ने निवेदन किया कि आप मेरे पुत्र स्वर्ण को अपने भण्डार में स्थापित करें। आपको प्रसन्न करने पर ही इसकी प्राप्ति संभव हो। तब शिव में अग्निपुत्र को अपनी गोद में बैठाकर प्यार किया। और उसे महाकाल वन में स्थान दिया। यह स्थान कर्कोटक के दक्षिण में है। इसके दर्शन से तथा स्वर्ण का दान करने से शुभ कार्य पूर्ण होते हैं। इस शिवलिंग के ज्वाला समान होने से वह स्वर्ण ज्वालेश्वर कहलाया। भगवान शिव और पार्वती ने उसे अपने पास स्थान दिया। जो लोग चतुर्दशी को स्वर्ण ज्वालेश्वर की पूजा करते हैं, उनके मनोरथ पूर्ण होते हैं।

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