dharam – Apni Dilli http://apnidilli.com Hindi News Paper Tue, 09 Mar 2021 11:29:22 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 http://apnidilli.com/wp-content/uploads/2023/09/cropped-logo-1-32x32.jpg dharam – Apni Dilli http://apnidilli.com 32 32 भारत के महाभारत काल का ऐतिहासिक तीर्थस्थल हिन्दू आस्था का केंद्र: अवंतिका देवी मंदिर http://apnidilli.com/14595/

Tue, 09 Mar 2021 11:29:22 +0000 http://apnidilli.com/?p=14595 धार्मिक जागृति के स्रोत देदीप्यमतान ‘अवंतिका देवीय (अम्बिका देवी) का मंदिर साधू-संतों तथा श्रद्धालु-भक्तजनों की श्रद्धा एवं आकर्षण का केन्द्र है। विशेषकर पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान आदि प्रदेशों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु, दर्शनार्थी यहां की यात्रा करते हैं।
अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महल एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है। इस मंदिर के बराबर से पतित पावनी भागीरथी गंगाजी बह रही है। यह मंदिर बहुत ही रमणीक है। जितने भी पृथ्वी पर सिद्धपीठ हैं वह सब सतीजी के अंग हैं, लेकिन यह सिद्धपीठ सतीजी का अंग नहीं है। इस सिद्धपीठ पर जगत जननी करुणामयी माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) स्वयं साक्षात प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदम्बा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियाँ ‘अवंतिका देवीय के नाम से प्रतिष्ठित हैं।
माँ भगवती अवंतिका देवी को पोशाक वस्त्रादि नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त माँ भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। माँ अवंतिका देवी अत्यंत ही दयालु हैं। मां भगवती अपने भक्त पर बहुत जल्दी कृपा करती हैं। कई भक्तनों द्वारा थोड़े ही समय में सेवा करके माता भगवती अवंतिका देवी के साक्षात दर्शन किये हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। रुक्मणि ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। भगवान श्री कृष्ण ने इसी मंदिर से उनकी इच्छा पर हरण किया था।
‘अवंतिका देवी्य का मंदिर बुलंदशहर जनपद की अनूपशहर तहसील के अंतर्गत जहाँगीराबाद से 15 किमी. दूर पतित पावनी गंगा नदी के तट पर निर्जन स्थान पर स्थित है। यहां न कोई ग्राम है, न कस्बा है। यहां पर मां अवंतिका देवी के श्रद्धालू भक्तजनों द्वारा यात्रियों के ठहरने हेतु बनवायी गयी धर्मशालाएं, साधू-संतों की कुटिया तथा आश्रम हैं। आधुनिक चकाचौंध से दूर, कोलाहल से रहित, प्रदूषण मुक्त प्रकृति का सुंदर, सुरभ्य वातावरण तथा पतित पावनी गंगा नदी का सान्निध्य होने के कारण यह स्थल साधू-संतों की साधना एवं तपोस्थली बनी हुई है।
यहां साधू-संत साधना तथा मां भगवती की आराधना करते हैं। इन्हीं साधु-संतों में संत शिरोमणि तपोनिष्ट संत महानन्द ब्रह्मड्ढचारी जी हैं। मां भगवती अवंतिका देवी मंदिर के अतिरिक्त यहां अन्य दर्शनीय स्थलों में रुक्मणि कुण्ड, महानन्द ब्रह्मड्ढचारी का विशाल रुक्मणि बल्लभ धाम आश्रम, यज्ञशाला तथा उनकी साधना स्थली है। इस अवंतिका देवी मंदिर तथा रुक्मणि कुण्ड से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। यह कथा द्वापर युग की है तथा रुक्मणि-कृष्ण विवाह से संबंधित है। किवदंतियों के अनुसार बुलन्दशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर नगर था। इस कुण्डिन पुर नगर के पूर्व में अवंतिका देवी का मंदिर, पश्चिम के दरवाजे पर शिवजी का मंदिर, उत्तर के दरवाजे पर पतित पावनी गंगाजी बह रही थीं तथा दक्षिण के दरवाजे पर एक बगीचा और हनुमान जी का मंदिर स्थित था। कुण्डिन नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे। जिनके नाम क्रमश: रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहिन थीं सती रुक्मिणी।
राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ कुण्ड (रुक्मिणी कुण्ड) में स्नान करके माता अवंतिका देवी के मंदिर में जाकर माता अवंतिका देवी (अंबिका देवी) का नाना प्रकार से पूजन करती थीं। पूजन करने के पश्चात प्रतिदिन माता भगवती अवंतिका देवी से प्रार्थना करती थीं, कि ‘हे जगतजननी! हे करुणामयी माँ भगवती!! मुझे श्रीकृष्ण ही वर के रूप में प्राप्त हों। राजकुमारी रुक्मिणी जब विवाह योग्य हुई तो उनके पिता राजा भीष्मक को उनके विवाह की चिंता हुई। राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती है तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने सती रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया। शिशुपाल ने अपनी सेना को विवाह से तीन दिन पहले ही कुण्डिनपुर के चारों ओर तैनात कर दिया और हुक्म दिया कि श्रीकृष्ण को देखते ही बंदी बना लिया जाए। राजकुमारी को जब यह मालूम हुआ कि उनका बड़ा भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता है तो वह बहुत दु:खी हुई।
राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मड्ढण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास संदेश भेजा कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरन चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है। इसलिए वह वहाँ आकर उसकी रक्षा करे। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार इसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण उस समय किया जब वह मंदिर में माता भगवती अवंतिका देवी का पूजन करने गयी थी।
जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बिठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासिन्धु तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाएं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय उनकी मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर आ गये। घोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएँ हार गयीं। उसी समय से कुण्डिपुर का नाम अहार पड़ गया।
अवंतिका देवी मंदिर के पीछे उ.प्र. सरकार के पर्यटन विभाग ने एक धर्मशाला का निर्माण कराया है तथा अनेक धार्मिक भक्तों ने यात्रियों के लिये स्थान बनाये हैं। आज से 11 वर्ष पूर्व गंगा में भयंकर बाढ़ आई मंदिर के चारों ओर पानी-पानी हो गया। उसी समय देवीभक्त केंद्रीय पर्यटन मंत्री जगमोन के प्रयास से लाखों रुपये के खर्चे से स्टोन पिचिंग और गोले बनवाये, ताकि पानी कटाव न करे। उसी समय सर्वेक्षण कराकर इस 8 किलोमीटर क्षेत्र को पर्यटन केंद्र बनाने का भी निर्णय लिया क्योंकि यहां पर मां अवन्तिका और साथ बाबा खडगसिंह का डेरा, शिवजी का अम्बकेश्वर मन्दिर, सिद्धबाबा का मंदिर, अली हुसैन का उर्स स्थल अहार आदि 5 तीर्थ स्थल हैं। पर सरकार बदल जाने से सब कुछ रुक गया। अब यहाँ पर स्वामी महानन्द जी ब्रह्मड्ढचारी जी कृपा से एक संस्कृत पाठशाला, मन्दिर और गऊशाला भी बनी है तथा रुक्मिणी बल्लभ धाम के समीप पश्चिम-दक्षिण दिशा में रुक्मिणी कुण्ड स्थित है। इस कुण्ड में रुक्मिणी स्नान करके अवंतिका देवी का पूजन करने जाती थीं। इसलिए इस कुण्ड का नाम रुक्मिणी कुण्ड पड़ा।

-महेश चन्द्र शर्मा (पूर्व महापौर)

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कैसे और कब मनाएं श्री महाशिवरात्रि? http://apnidilli.com/14506/ Fri, 05 Mar 2021 11:42:25 +0000 http://apnidilli.com/?p=14506 11 मार्च, गुरुवार को महाशिवरात्रि कई शुभ संयोगों में आ रही है। इस दिन एक ही मकर राशि में 4 बड़े ग्रह-शनि, गुरु, बुध तथा चंद्र, निष्ठा नक्षत्र में होंगे तथा आंशि काल सर्प योग भी रहेगा। ऐसे अवसर पर जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वे इसकी शांति करवा सकते हैं।
इस योग में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होगा और जातक यदि अपनी अपनी राशि अनुसार भगवान की आराधना करेंगे तो इससे उनकी कई मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। इस दिन रुद्राभिषेक करना शुभदायक होगा। इस दुर्लभ योग में भगवान शिव की आराधना करने पर दोष भी दूर हो सकेंगे और कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि पर्व माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव का व्रत रखने वालों सौभाग्य, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है। शिव का अर्थ है : कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन? सृजनहार के रूप में लिंग की पूजा होती है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है प्रतीक। भगवान शिव अनंत काल के प्रतीक हैं। मान्यताओं के अनुसार, लिंग एक विशाल लौकिक अंडाशय है, जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड। इसे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। शिव जी को महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ के नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने ही धरती पर सबसे पहले जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया था, इसीलिए भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त
=महाशिवरात्रि तिथि 11 मार्च 2021 (बृहस्पतिवार)
=चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 11 मार्च 2021 को दोपहर 2.39 मिनट से
=चतुर्थी तिथि समाप्त : 12 मार्च 2021 को दोपहर 3. 2 मिनट तक
=शिवरात्रि पारण समय : 12 मार्च की सुबह 6 बजकर 34 मिनट से शाम 3 बजकर 2 मिनट तक
इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रख के रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित ब्राहम्णों तथा शारीरिक रुप से अस्मर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है जब ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था। भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर हो नहीं पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्वए दोनों ही समान महत्व रखते हैं। शिव रात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है जो देश के हर कोने में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती के मिलन का महापर्व कहलाता है। इस व्रत से साधकों को इच्छित फल,धन, वैभव, सौभाग्य, सुख समृद्धि, आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रुप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोश के समय शिव तांडव करते हुए ब्रहाण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए, इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रुप में भी मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अद्र्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। स्कंद पुराण के अनुसार-चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।
व्रत की परंपरा
प्रात: काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर, कलश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें । कलश को जल से भर कर रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, विल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें । रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।
विशेष: चेतावनी
बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। बेल पत्र के तीनों पत्ते पूरे हों एटूटे न हों । इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुष्प माना गया है। अन्य फूलों मे कनेर, आक, धतूरा, अपराजिता, चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जा सकते है। जो पुष्प वर्जित हैं वे हैं-कदंब, केएड़ा, केतकी। फूल ताजे हों बासी नहीं।
इस दिन काले वस्त्र न पहनें। इसमें तिल का तेल प्रयोग न करें। पूजा में अक्षत ही चढाएं। टूटे चावल न चढ़ाएं।
भगवान शिव को सफेद फूल बहुत पसंद होता हैं, लेकिन केतकी का फूल सफेद होने के बावजूद भोलेनाथ की पूजा में नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते समय शंख से जल अर्पति नहीं करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है। शिव की पूजा में तिल नहीं चढ़ाया जाता है। तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है, इसलिए भगवान विष्णु को तिल अर्पित किया जाता है लेकिन शिव जी को नहीं चढ़ता है। भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी टूटे हुए चावल नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। शिव प्रतिमा पर नारियल चढ़ा सकते हैं, लेकिन नारियल का पानी नहीं। हल्दी और कुमकुम उत्पत्ति के प्रतीक हैं, इसलिए पूजन में इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। बिल्व पत्र के तीनों पत्ते पूरे होने चाहिए, खंडित पत्र कभी न चढ़ाएं। चावल सफेद रंग के साबुत होने चाहिए टूटे हुए चावलों का पूजा में निषेध है। फूल बासी एवं मुरझाए हुए न हों।
विभिन्न सामग्री से बने शिवलिंग का अलग महत्व
फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू-संपत्ति प्राप्त होती है। अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है। गुण व अन्न मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृषि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं। चांदी से निर्मित शिवलिंग धन-धान्य बढ़ाता है। स्फटिक के वाले से अभीष्ट फल प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरुप बनाने वाला, समस्त पापों का नाश करने वाला माना गया है।
शिवरात्रि पर करें कालसर्प या राहू योग का निवारण
चांदीे के नाग-नागिन का जोड़ा, दुध या गंगा जल, हलवा, सरसों का तेल, काला सफेद कंबल, शिवलिंग पर अर्पित करें। महामृत्युंज्य मंत्र की कम से कम एक माला 108 मंत्र अवश्य पढ़ें या किसी सुयोग्य कर्मकांडी से इस दोष का विधिवत निवारण करवाएं।
मुख्य मंत्र
-ओम् नम: शिवाय
-ओम् नमो वासुदेवाय नम
-ओम् राहुवे नम:
-महामृत्युंज्य मंत्र-ओम् त्रयंम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं!
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!
-शिवरात्रि पर अन्य मंत्र आप विभिन्न समस्याओं के लिए कर सकते हैं
आय वृद्धि रू शं हृीं शं !!
विवाह: ओम् ऐं हृी शिव गौरी मव हृीं ऐं ओम् !
शत्रु: ओम् मं शिव स्वरुपाय फट् !
रोग: ओम् हैं सदा शिवाय रोग मुक्ताय हैं फट् !
साढ़े साती: हृीं ओम् नम: शिवाय हृीं !
मुकदमा: ओम् क्रीं नम: शिवाय क्रीं !
परीक्षा: ओम् ऐं गे ऐं ओम् !
बिगड़ी संतान: ओम् गं ऐं ओम् नम: शिवाय ओम् !
विदेश यात्रा: ओम् अनंग वल्लभाये विदेश गमनाय कार्यसिद्धयर्थे नम:!
सुख सम्पदा: ओम् हृौं शिवाय शिवपराय फट्!
शत्रु विजय: ओम् जूं स: पालय पालय स: जूं ओम्!
रोजगार प्राप्ति : ओम् शं हृीं शं हृीं शं हृीं शं हृीं ओम!
प्रेम प्राप्ति: ओम् हृीं ग्लौं अमुकं सम्मोहय सम्मोहय फट्!
महाशिवरात्रि के दिन अपनी राशि के अनुसार आराधना

मेष : गुलाल से शिवजी की पूजा करें साथ में शिवरात्रि के दिन ऊँ ममलेश्वाराय नम: मंत्र का जाप करें।
वृषभ : दूध से शिवजी का अभिषेक करें और नागेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
मिथुन : गन्ने के रस से शिवजी का अभिषेक करें और भुतेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
कर्क : पंचामृत से शिवजी का अभिषेक करें और महादेव के द्वादश नाम का स्मरण करें।
सिंह : शहद से शिवजी का अभिषेक करें और नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
कन्या : शुद्ध जल से शिवजी का अभिषेक करें और शिव चालीसा का पाठ करें।
तुला : दही से शिवजी का अभिषेक करें और शांति से शिवाष्टक का पाठ करें।
वृश्चिक : दूध और घी से शिवजी का अभिषेक करें और अन्गारेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
धनु : दूध से शिवजी का अभिषेक करें और समेश्वरायनम: मंत्र का जाप करें।
मकर : अनार से शिवजी का अभिषेक करें और शिव सहस्त्रनाम का उच्चारण करें।
कुम्भ : दूध, दही, शक्कर, घी, शहद सभी से अलग अलग शिवजी का अभिषेक करें और शिवाय नम: मंत्र का जाप करें।
मीन : ऋतुफल (जो मौसम का खास फल हों) से शिवजी का अभिषेक करें और भामेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।

मदन गुप्ता ‘सपाटू ‘
458, सैक्टर -10, पंचकूला- हरियाणा-134109

मो : 9815619620

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