राष्ट्रीय

धरती कहे पुकार के बहुत हो गया, प्रकृति से छेड़छाड़ अब और नहीं अब और नहीं लेखक : डॉ. अशोक कुमार वर्मा

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष लेख

वर्ष 1976 में अपनाए गए 42वें संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया है। संविधान के भाग IV में सन्निहित अनुच्छेद 51 ‘क’ मौलिक कर्तव्यों के बारे में है। जहां पर स्पष्ट रूप से लिखा है कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण की रक्षा करें। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-ए (जी) के अनुसार “जंगलों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा।” आज बड़े आश्चर्य की बात है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकार तो स्मरण रहते हैं लेकिन कर्तव्यों के बारे में सदैव चुप्पी साधे बैठा रहता है। लोग अपने झमेलों में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें इस बात से कोई लेना देना नहीं कि मेरे आस-पास क्या घटित हो रहा है। लोगों की यह भावना कि “मुझे क्या” सबसे बड़ी गंभीर समस्या है।

अभी मई और जून के माह में सभी समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर बढ़ रहे तापमान का ही वर्णन मिल रहा था। लोग गर्मी के कारण बेहाल हो गए तो पशु और पक्षियों के जीवन पर बन आई थी। ग्लोबल वार्मिंग एक ज्वलंत समस्या न केवल भारत की है अपितु संपूर्ण विश्व की बन गई है। मानव अपने विनाश को स्वयं आमंत्रित करने पर उतारू है। आज बेमौसम बरसात बेमौसम आहार-विहार और बेमौसम की उपज मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खिलवाड़ बन गई है। भौतिकतावाद के युग में मानव मानव न होकर मशीन बन गया है। अधिक भौतिक सुखों की चाहत उसके जीवन में विष की भांति शनै शनै नाश की ओर प्रशस्त कर रही है। विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ विनाश का द्योतक है। धरती पर अवैध निर्माण और अधिग्रहण प्रकृति से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है। यह सत्य है कि मनुष्य विकास के पथ पर अग्रसर है लेकिन यह भी सत्य है कि विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य न केवल नैतिक मूल्य भूल रहा है अपितु पर्यावरण के साथ भी खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहा। मनुष्य विशेष रूप से आज का युवा एक ही रात में संसार की हर वस्तु प्राप्त करने को आतुर है। भगवान ने अच्छा किया कि मनुष्य के पंख नहीं लगाए। यदि ऐसा होता तो वो आकाश को भी पृथ्वी की भांति प्रयोग में लाता।

  साधारण भाषा में पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार करना, उसकी रक्षा करना और उसे बनाए रखना ही पर्यावरण संरक्षण है। आज प्राय: देखने में आता है कि लोग पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ साथ बढ़ रहे तापमान को और अधिक बढ़ाने में जाने अनजाने में योगदान दे रहे हैं। आज किसी भी सरकारी, निजी, सार्वजनिक स्थान पर हम देखते हैं कि लोग कूड़े कर्कट के ढेर को आग लगाकर अपने आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ करने का प्रयत्न करते हुए मिलेंगे जबकि ऐसा करके वे वातावरण को और अधिक प्रदूषित करने के साथ साथ तापमान को बढ़ाने में योगदान दे रहे होते हैं। प्राय: सार्वजनिक स्थानों पर जहां पेड़ पौधे अधिक होते हैं वहां पत्तों के ढेर में आग लगाकर वातावरण को प्रदूषित करने का कार्य करते हैं। ऐसा करने से जीवित और प्रफुल्लित पेड़ पौधे भी आग की चपेट में आकर मुरझा कर मरणासन्न हो जाते हैं और बहुत अधिक मर जाते हैं। अनेक स्थानों पर सड़कों के दोनों और कूड़े कर्कट में आग लगाने पर न केवल पौधे मरते हैं अपितु धूऐं के कारण सदा दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है। दिन प्रतिदिन बढ़ रहे तापमान के कारण जहां आज जंगलों में आग लग रही है वहीं दूसरी और ग्लेशियर पिंघल रहे हैं। धरती अपने स्थान से खिसक रही है। सड़कों के किनारे दुकानदार और रेहड़ी वाले कूड़े कर्कट के साथ साथ प्लास्टिक और पॉलिथीन आदि को आग के हवाले करके यह सोचते हैं कि हमने अपने क्षेत्र को स्वच्छ कर लिया। विभिन्न स्थानों और सड़कों पर भंडारे एवं ठंडे पानी की छबील लगाने वाले पुण्य कमाने के स्थान पर प्लास्टिक कचरा इत्यादि फैलाकर वातावरण को प्रदूषित करने का काम कर रहे होते हैं। थोड़े समय में वह सड़कों पर बिखरे पड़े होते हैं।

आज चाहे छोटा बच्चा हो, युवा हो या बुजुर्ग उन्हें आप ईंधन चलित वाहन का प्रयोग करते पाएंगे। यद्यपि चाहे उस बच्चे के पाँव ठीक से ब्रेक आदि पर न पहुँच रहे हों। आज से लगभग 30-40 वर्ष पूर्व सभी घरों में कई कई साइकिल होती थी, जिस पर वे सवार होकर अपना कार्य करते थे। सबसे बड़ी बात हमारे पूर्वज कभी अधिक बीमार नहीं होते थे क्योंकि वे अपना कार्य अपने हाथों पैरों द्वारा शारीरिक परिश्रम से करते थे। यदि ये कहें कि उनकी मुख्य सवारी साइकिल थी तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। साइकिल की सवारी करते समय कई बार एक ही साइकिल पर तीन लोग एक साथ बैठ कर यात्रा करते थे। सबसे बड़ी बात कि साइकिल चालक दो व्यक्तियों का भार भी सहजता से ही खींच लेता था।  
समय बदला, लोगों की सोच बदली, साइकिल का स्थान स्कूटर, फिर मोटर साइकिल और अब कार ने ले लिया। सबसे बड़ी बात कि एक कार और एक ही सवारी। सड़कों पर दिन प्रतिदिन वाहनों का बढ़ता बोझ ने केवल सड़क व्यवस्था को प्रभावित करता है अपितु पर्यावरण को प्रदूषित करने में भी इसकी मुख्य भूमिका है। एक बार क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो लुधियाना (भारत) आए और वहां से अपने देश के लिए कुछ हज़ार साइकिल आर्डर कर गए।   अपने देश जाकर उन्होंने सुझाव दिया कि सभी कर्मचारियों की नियुक्ति 8 किलोमीटर के क्षत्र में कर दी जाए और उन्हें एक एक साइकिल उपलब्ध कराई जाए ताकि वे कार्यालय साइकिल से आएं और जाए। इस प्रकार उन्होंने अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधार दिया था।  

यदि हम चाहते हैं कि बेमौसमी बारिश से फसलों की रक्षा हो तो पर्यावरण संरक्षण की ओर बढ़कर अधिक से अधिक पौधारोपण किया जाए। परंपरागत खेती को अपनाए। ईंधन के द्वारा संचालित संसाधनों पर नियंत्रण किया जाए। पहाड़ पर अनावश्यक छेडछाड न हो। साइकिल प्रयोग पर जोर देकर हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। अभी भी समय है। सावधान रहकर मनुष्य पर्यावरण प्रेमी बने। विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़, ऊँचे ऊँचे भवन, विकास के नाम पर कटते वृक्ष, जंगलों की आग, विकास के नाम पर पहाड़ों का कटाव, सिकुड़ती धरती, सड़कों का विस्तार मर्यादित हो।

(लेखक डॉ. अशोक कुमार वर्मा, हरियाणा पुलिस में सेवारत हैं और पिछले 20 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण पर कार्य करते हुए साइकिल का प्रयोग करते हैं। 17500 से अधिक पौधे लगा चुके हैं। हरियाणा में 4 बार साइकिल यात्राएं निकाल चुके हैं। नशे के विरुद्ध प्रचार प्रसार में जुटे हुए हैं।)

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