धर्म-कर्म

सभी कार्यों में विजयी बनाते हैं डमरुकेश्वर महादेव

उज्जैन में रामसीढ़ी के पास स्थापित डमरुकेश्वर महादेव 84 महादेवों में चौथे नम्बर पर हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार वैवस्वतकल्प में रुद्र नामक असुर के वज्र नामक बली पुत्र था। उसने देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया। सभी देवता ब्रह्मा के पास गए परन्तु उनसे भी कुछ नहीं हुआ। तब देवताओं और ऋषियों ने मंत्र साधना की। तब उनके सामने कृत्या उत्पन्न हुई। उसने देवताओं से उसकी आराधना का कारण पूछा। यह जानने पर कि वज्र का नाश करना है, उसने अट्टहास किया। इससे कई कन्याएं उत्पन्न हुईं। उन सबने मिलकर वज्र से भयंकर युद्ध किया। तब वज्र ने तामसी नामक माया उत्पन्न की। उस अंधकार से घबराकर कृत्या उन कन्याओं के साथ महाकाल वन में आ गई। वज्र भी अपनी सेना लेकर वहां आ गया। उस समय नारद जी मन्दराचल स्थित शिव के पास गए और वज्र द्वारा देवताओं के पराभव से उन्हें अवगत कराया। शिवजी महाकाल वन में आए। वहां दानवों की सेना को देखकर उन्होंने अपना भयंकर डमरू बजाया। इससे दानवों की सेना मोहित हो गई। डमरू की ध्वनि से वहां एक लिंग उत्पन्न हुआ। उस लिंग से जो ज्वाला उत्पन्न हुई, उससे राक्षसों की सेना भस्म हो गई। डमरू से उत्पन्न होने के कारण वह शिवलिंग डमरुकेश्वर कहलाया। इनका दर्शन करने से पाप नष्ट होते हैं, युद्ध में विजय प्राप्त होती है और रुद्रलोक मिलता है।

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