धर्म-कर्म

मुक्ति का मार्ग हैं अप्सरेश्वर महादेव

उज्जैन के पटनी बाजार क्षेत्र में स्थित अप्सरेश्वर महादेव 84 महादेवों में 17वें नम्बर के महादेव हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय इन्द्र के दरबार में रम्भा नाच रही थी। मन के विचलित होने से वह लय ताल में चूक कर गई। तब इन्द्र ने क्रोधित होकर उसे पृथ्वी पर भेज दिया। उसके साथ उसकी सखियां भी पृथ्वी पर आ गई। तब नारदजी वहां आए। उन्होंने अप्सराओं के विलाप का कारण पूछा। अप्सराओं द्वारा कारण बताने पर नारदजी ने उन्हें समझाया कि वे महाकाल वन में जायें। वहां हरसिद्धि पीठ के सामने एक लिंग है, उसकी आराधना करें। इस लिंग की आराधना करने से उर्वशी को भी अपना पति पुन: प्राप्त हुआ था। तब रम्भा अपनी सखियों के साथ महाकाल वन में उस लिंग के पास गई। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें पुन: इन्द्रलोक प्राप्त होगा। अप्सराओं द्वारा पूजित होने से यह लिंग अप्सरेश्वर कहलाया। अप्सरेश्वर के दर्शन पूजन और स्पर्श से किसी का स्थान भ्रष्ट नहीं होता है।

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