पर्यटन – Apni Dilli https://apnidilli.com Hindi News Paper Sat, 27 Aug 2022 12:37:19 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.3 https://apnidilli.com/wp-content/uploads/2023/09/cropped-logo-1-32x32.jpg पर्यटन – Apni Dilli https://apnidilli.com 32 32 धरती की नायाब धरोहर जम्मू-कश्मीर https://apnidilli.com/19500/

Sat, 27 Aug 2022 12:37:19 +0000 http://apnidilli.com/?p=19500 जम्मू-कश्मीर को धरती का जन्नत भी कहा जाता है। मतलब ऐसा अद्भुत खूबसूरत क्षेत्रा जो काल्पनिक होने का आभास देता है। इस लेख में कुछ खास जगहों के बारे में पाठकों को जानकारी दी जा रही है। श्री नगर कश्मीर का सब से खूबसूरत पर्यटन स्थल है। चारों ओर से बर्फीली पहाड़ियों से घिरा यह शहर अपने प्राकृतिक दृश्यों के लिए दुनियाभर में मशहूर है।

डल झीलः श्री नगर की समस्त खूबसूरती डल झील पर टिकी है। यह झील प्राकृतिक जल से बनी है। डल झील के भीतर लगभग 1300 झरने हैं। जो स्वयं ज़मीन के अन्दर से फूटते हैं।
डल झील के इर्दगिर्द भव्य बाग़ बगीचे, अत्यंत सुन्दर इमारतें, मख़मली सड़कें हैं। इस झील के कई ऐसे दीप हैं जो पर्यटको का मन मोह लेते हैं। झील में तैरते अनेक होटल, शिकारे तथा हाऊस बोट उपलब्ध् हैं। हाऊसबोट एक लंबीचौड़ी किश्ती में होटलनुमा स्थान होता है। बोट ;किश्तीद्ध को खूबसूरती
सें संवारा गया होता है। इस में बैडरूम, बाथरूम, टी.वी., फ़ोन आदि सुविधएं उपलब्ध् रहती हैं।
शिकारे में एक खूबसूरत सुर्साज्जत कमरा होता है, पर हनीमून का असली आनंद हाऊसबोट तथा शिकारे में ही आता है। डल झील से सूर्यास्त का दृश्य बहुत ही मन भावन दिखाई देता है। डल झील के एक छोर पर नेहरू उछान है, यह उछान जवाहर लाल नेहरू की याद में बनाया गया है।
निशात बाग़ः यह बाग़ कश्मीर के सभी बाग़ों से बड़ा है। यहां चारो ओर अति सुन्दर खिले फूल, फौआरों के पानी से ऊपर को उभरती लकीरें सुखद अनुभव देती हैं। यह बाग़ श्री नगर से ग्यारह किलोमीटर दूर है। गुलाब के फूलों की मनमोहनी सुगंध्, चंपा के दुध्यिा रंग के फूल अन्य फूलों से मिल कर बाग़ में एक सुखद और शान्ति भरा माहौल उत्पन्न करते हैं। बागद्य को देखने के लिए टिकट लेना पड़ता है। यहां को मौसम गरमियों में गुनगुना सा लगता है। न ज़्यादा सर्दी होती है न ज़्यादा गर्मी। सर्दियों में भी यहां पर्यटकों की भीड़ सी उमंड़ आती है। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ। श्री नगर कश्मीर में सर्दियों में घूमने का अपना ही लुत्फ होता है। गर्म वस्त्रों में ढके केवल चेहरे ही नज़र आते हैं। देश-विदेश से यात्राी इस स्थान को देखने आते है। यहां कश्मीरी दस्तकारी का सामान भी मिलता है। यहां जाने के लिए बस-टैक्सी आदि उपलब्ध् हैं। शालीमार बाग़ः यह भव्य बाग़ श्री नगर से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मुग़लकालीन वास्तुकला का यह अद्भुत नमूना है। इस के बिल्कुल सामने मध्य में ए नहर बहती है, जिस में कई फौआरे हैं, जो बाग़ की सुन्दरता में चार चांद लगाते हैं। सर्दियां तो सर्दियां होती हैं, परन्तु गरमियों में भी यहां का मौसम ठंडा व मनभावन होता है। नगर के बीच में 4 स्तभों वाला एक प्राचीन कमरा है। यहां लोगों के बैठने व आराम करने के लिए स्थान है। चारों ओर ऊंचे वृक्ष तथा भव्य फूल अपने
अप्रतिम सौंदर्य का परिचय देते नज़र आते हैं। बाग़ के पीछे जबरवान पर्वतमाला है और इस के आगे वाले भाग में डल झील का अंतिम भाग आता है। पर्यटक यहां बस, टैक्सी या अपनी गाड़ी से आते हैं। यहां मौसम अपना मिजाज़ कब बदले, कुछ पता नहीं होता, इस लिए यात्राी अपने साथ गरम कपड़े
तथा छाता अवश्य रखते हैं। परेशान या अस्वस्थ व्यक्ति भी यहां आ कर तंदरूस्त महसूस करता है। रात के समय यहां लाइट एंड सांऊड कार्यक्रम भी होता है। अल्लापत्राी पहाड़ीः गुलमर्ग से 7 किलोमीटर अनवरत सीध्ी टेढ़ी-मेढ़ी चढ़ाई के पार बर्फीली पहाड़ी के शिखर का नाम है ‘अल्लापत्राी पहाड’़। जम्मू से गुलमर्ग 274 किलोमीटर दूर है। साफ नीले गगन के नीचे बर्फीली पहाड़ी। दूर-दूर तक हरिआवल की बिछी चादर, तरह-तरह के खिले फूल वातावरण को आनंदमयी बनाते हैं। गुलमर्ग से गरम कोट, टैंकिंग सूट पहन, किराए के घोड़े पर चढ़ व गाइड को साथ लेकर अल्लापत्राी पहाड़ पर जाया जाता है। गुलमर्ग से अल्लापत्राी की चढ़ाई का ऊबड खाबड, कीचड़ तथा छोटे बड़े पत्थरों वाला रास्ता घने देवदार वृक्षों से गुजरता हुआ वहां तक पहुंचता है। आप एक कदम भी सीध नहीं रख सकते। केवल प्रशिक्षित घोड़े वाले ही वढ़ सकते हैं। कोई भी वाहन वहां नहीं जा सकता। लगभग दो किलोमीटर पहले समतल पहाड़ आ जाते हैं, जो तहदार चट्टानों जैसे होते हैं। समतल रास्ते के साथ फिर सीध बर्फ से लदा पहाड़ शुरू होता है। समतल क्षेत्रा में स्वयं खिले फूलों की विध्ी भव्य चादरें पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। कब बारिश आ जाए कोई पता नहीं। सारे सफ़र में उत्सुकता बनी रहती है। यहां नवंबर से जनवरी तक खूब बर्फ पड़ती है। यह बर्फ गरमियों में पत्थर की भांति जम जाती है और बर्फ की एक मज़बूत सड़क बन जाती है। गुलमर्ग से अल्लापत्राी तक घोड़े का किराया 700 से लेकर एक हज़ार रूपए तक होता है। यहां का नज़ारा जन्नत को पीछे छोड़ता
है। चश्मेशाही पार्कः यह सुन्दर चश्मेशाही पार्क श्री नगर से 8 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां पर हरी-भरी, सुन्दर पहाड़ियों के दृश्य इस पार्क को ख़ास खूबसूरती प्रदान करते हैं। इस पार्क के बीच एक सीतल जल का चश्मा है। जिस का पानी बहुत ठंडा तथा औषद्यि गुणों से पूर्ण है। यहां खिले लाल रंग के सुन्दर फूल सण का अभिवादन करते नज़र आते हैं। गुलाब की कई किस्में यहां पाई जाती हैं। पार्क के छोर पर एक तरफ अखरोट के कई ऊँचे वृक्ष हैं। इस स्थान पर पर्यटकों का तांता लगा रहता है। बच्चों के देखने के लिए यह स्थान बहुत सुन्दर एवं मनोरंजन प्रिय है। चश्मेशाही पार्क यानी बाग़ सारे मुग़ल बाग़ों से छोटा है और इस का चश्मा भी प्रकिृतिक है। पर्यटकों के रहने के लिए यहां पर बहुत सी हट् बनी हुई हैं। टूरिस्ट हट्स के लिए आप स्थानीय टूरिस्ट औफ़िस से संपर्क कर सकते हैं। आप को टैक्सी या अपनी गाड़ी लेकर यहां तक जाना पड़ेगा, क्योंकि यहां तक कोई बस सेवा नहीं है। चश्मेशाही पार्क वाकई मानव की कारीगरी और प्रकृतिक दृश्यावलियों का अद्भुत नमूना है। जम्मूः रेलमार्ग से जुड़ा हुआ जम्मू नगर जम्मूकश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधनी है। दिल्ली चंडीगढ़ श्री नगर मार्ग पर यह श्री नगर का प्रमुख पड़ाव है। जम्मू में इतिहास कला के खजाने छिपे हैं। मन्दिरों का शहर है जम्मू। यहां से ही वैष्णों देवी की यात्रा प्रारम्भ होती है। मुबारक मण्डी और डोगरा आर्ट गैलरीः यहां डोगरा आर्ट गैलरी देखने लायक है। इस में दरबार हाल, प्राचीन वस्तुयों के संग्रह, कलागृह, अस्त्राशस्त्रा, सिक्के और शिल्प महत्त्पूर्ण हैं। अमर महल व संग्रहालयः तवी नदी के तट पर बना यह महल फ्रैंचशैली पर बना है। इस में शाही परिवारों के चित्रों और पहाड़ी शैली के चित्रों के साथ ही चित्राकला से संबंध्ति पुस्तकों का संग्रह है। पटनीटौपः जम्मू से 110 किलोमीटर दूर पटनीटौप मशहूर हिल स्टेशन है। जंगल, वन, बर्फ से ढके पर्वत, झरने और हरीभरी सैरगाहें यहां सैलानियों को लगातार बुलाती हैं। सालभर पैराग्लाइडिंग और बर्फ के वक्त स्कीइंग जैसे कई रोमांचक खेल चलते रहते हैं। कुद, मानेसर, अखनूरः जम्मू से 110 किलोमीटर दूर कुछ कुद नामक जगह पर कुदरत ने अपने करिश्में दिखाएं हैं। सर्दियों में बर्फ नएं नज़ारे लाती है। जम्मू से 62 किलोमीटर दूर मानेसर झील है।
जम्मू से 32 किलोमीटर दूर अखनूर में चिनाव नदी को देखना रोमांचक है। जिस के साथ यहां सोहनी महिवाल की प्रेम कथा जुड़ी हुई है। कुल मिला कर जम्मू-कश्मीर ध्रती की नायाब ध्रोहर तो है ही, यहां हज़ारों स्थान ओर देखने को बनते हैं।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध

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प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर, एडमिंटन, कनेडा https://apnidilli.com/19497/ Sat, 27 Aug 2022 12:27:38 +0000 http://apnidilli.com/?p=19497 द भारतीय कल्चर्ल सोसायटी ऑफ अल्बर्टा, हिन्दू मन्दिर, एडमिंटन, कनेडा का प्रसिद्ध मन्दिर है। यह स्थान 9507,39ए
एविन्यू, एडमिंटन, कनेडा में सुशोभित है। इस पवित्र स्थान का 10 जून 2006 को मंगलाचरण किया गया।
मन्दिर का शाब्दिक अर्थ है, घर, देवालय। मन के भीतर का स्थान। यहां एकाग्रता में भक्ति भाव की समर्पण शीलता का आनंद
मिलता है। यहां अतिन्द्रियता की अवस्था पैदा होती है। यहां संस्कृति के शिल्प का निर्माण होता है। मन्दिर एक ऐसा स्थान है
यहां आस्था प्रेम संवेदना सद्भाव की भितियांे पर अपने संसार को खड़ा करना है। मस्तिष्क की उथल-पुथल खत्म होती है। यहां
अन्तरात्मा की विवेक शक्ति, परिपक्वता, तात्विक गहराई, निष्ठा, दायित्वभावना, पुण्यता, धर्म कृत्दक्षता, संवेदनशीलता,
आत्मिक और आध्यात्मक शक्ति, चिरन्तन मानवीय मूल्यों की सुन्दरता, प्रेम भावना, समता, कर्तव्य भावना सदैव उजागर
होती है।
मन्दिर ईश्वर की पूजा के लिए बनाए जाते हैं। यहां के मुख्य पुजारी श्री पंकज दीक्षित जी ने बताया कि आस्था में विश्वास मिलता
है, शक्ति मिलती है, काम करने की ऊर्जा मिलती है। यहां तनाव मुक्त होता है। दृश्य तथा अदृश्य तनाव खत्म होता है। हमारी
भारतीय पद्धति बहुत वैदिक है। हर एक तथ्य के पीछे वैज्ञानिक कारण होता है।
मन्दिर में घंटी लगाने के पीछे बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है। बहुत से लोगों को इस का ज्ञान नहीं कि पूरी दुनियां को पता है कि
भारत में ब्राहमंड का विज्ञान कूट-कूट के भरा हुआ है। उन्हीं ब्रहमांडीय वैज्ञानिक में से किसी वक्त बड़े शोधकर्ता ने यह सिद्ध कर
दिया कि मन्दिर की घंटी बजाने से उसकी टन-टन की आवाज़ से आस-पास के बैक्टीरिया मर जाते हैं तो जितने भी श्रदालु मन्दिर
में घंटी बजाते हैं असल में वह बैक्टीरिया का बध कर रहे होते हैं।
घंटियों की आवाज़ मन्दिर की दिव्य पहचान है और पुराने समय से ही मन्दिरों में घंटियां लगाने की परम्परा चली आ रही है।
मन्दिर में घंटी लगाने और बजाने के पीछे धार्मिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी है।
घंटी आवाज़ के बिना पूर्ण नहीं होती आरती। देवी-देवताओं की आरती घंटी के नाद के बिना पूर्ण नहीं हो सकती। भगवान की
आरती में कई प्रकार के वाद्य यंत्र बाजाए जाते हैं, इसमें घंटी का स्थान महत्वपूर्ण है। घंटी की ध्वनि मन-मस्तिष्क और शरीर का
साकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है तो घण्टी की आवाज़ से लोगों के मन में शक्ति, भक्ति, एकाग्रता भाव, जागृत होते हैं।
वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाता है। आवाज़ बहुत चमत्कारी होती है। मन्दिरों में लगातार एक लय में घंटियां बनजे से जो
ध्वनि निकलती है वह हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट कर देती है। साकारात्मक वातावरण निर्मित होता है।
मन्दिरों में घंटियां चार प्रकार की होती हैं – गरूड़ घंटी, द्वार घंटी, हाथ घंटी तथा घंटा; घंटी की मनमोहक एंव कर्ण प्रिय ध्वनि
मन-मस्तिष्क को अध्यातम भाव की ओर ले जाने में सामर्थ्य रखती है।
मन्दिरों में विचार-चिंतन और भावनाओं की एक विलक्षण संगति देखने को मिलती है। सहानुभूति, आध्यात्मिकता और
सौंदर्यात्मक सृजन प्रक्रिया मिलती है। निराशा और कुंठा खत्म होती है।
पण्डित राजेश मोहन तथा जन्मान्शी लक्ष्मण जी ने यहां बताया कि मन्दिर में पूजा का बहुत महत्व होता है। यहां पांच देवताओं
का पूजन (पूजन) (पंचोपचार) तथा षोडशोपचार का पूजन एकाग्रचित से होता है। जो वातावरण तथा मानव दृश्य को शुद्ध तथा
दृश्य तथा अदृश्य तनाव से मुक्त करता है।
पूजाः यथेश्ट आदर सत्कार, आव भगत, प्रार्थना, दिव्य स्थान, आध्यात्मिकता, दिव्य अनुष्ठान, आर्शीवाद, शुभवचन असीस को
कहते हैं। एकाग्रता में केवल अंतमुर्खता, आत्मानुभूति, गहराई में डुबकियां लेना होता है।
जिन लोगों ने एकाग्रता साधी है, निर्विकल्पता और समता साधी है वे मन्दिर के र्प्याय ही हैं। मन्दिर में स्कन्द पुराण की कथा भी
चल रही थी। स्कन्द पुराण मुख्य रूप् में हिन्दू भगवान शिव और देवी पार्वती के आस-पास केन्द्रित है।
यहां आचार्य पण्डित श्री पंकज दीक्षित, श्री जन्मान्शी लक्ष्मण तथा श्री राजेश मोहन झा जी ने बताया कि यह मन्दिर लगभग दो
एकड़ में शोभनीय है। कार पारकिंग की भव्य सुविधा है।
एडमिंटन, (कनेडा) में यह सबसे बड़ा मन्दिर है। मन्दिर में प्रवेश करते ही फूलों की क्यारियां अभिवादन करती प्रतीत होती हैं।
इनके बाद कुछ सीढ़ियां चढ़कर मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। बाई ओर जूता घर है, इस के साथ ही जल प्रबंधन तथा छोटा सा
चर्तुभुज आंगन यहां भगवान गणेश जी की बड़ी प्रतिभा दीवार पर सुशोभित है जो प्रत्येक आगंतुक को शुभकामना, आर्शीवाद देती
प्रतीत होती है। फिर मन्दिर का बड़ा दरवाजा खुलते ही सामने खूबसूरत झिलमिलाता आध्यात्मिकता में ओत-प्रोत बड़ा हाल है।
जो स्वच्छता और पवित्रता में ऊँ, ओ३म (ओम) का उच्चारण करने को लालायत करता है। एक मुकम्मल शांति, सुकून तथा
संयमितता का आनंद मिलता है।

मन्दिर हाल में प्रवेश करते ही द्वार पाल की वाई ओर काले श्याम रंग में भव्य वस्त्र गृहन किए हुए गरूड़ जी की प्रतिभा शोभनीय
है। बिल्कुल सामने आध्यात्मिक रौशनियां में भगवान प्रतिमाएं-भगवान श्री गणेश, दुर्गा, गायत्री, राधा कृष्ण, शिव परिवार,
पंचमुखी हनूमान, वेक्टेश्वर स्वामी, राम लक्ष्मण दरवार आदि भगवान की प्रतिमाएं आध्यात्मिक भव्य वस्त्रों में शोभनीय हैं।
जिनके दर्शन से चित्त, दृश्य, आत्मा, आनंद की संसिक्तता में प्रवेश करती है। अन्तरात्मा के निभृत एकामत के सत्य के साथ
अंतरंग और नितांत वैयतिक साहचर्य का सम्मूर्तन होता है। भगवान के यथार्थ सौंदर्य के दर्शन नयी जीवन दृष्टि भर देता है। इन
प्रतिमाओं के दरवार के साथ दाईं-वांई ओर भगवान मूर्तियां और भी सुशोभित है।
मन्दिर में माथा टेकने के पश्चात सभी भक्तों को अंजलि में अमृत प्रसाद दिया जाता है तथा मौजूद अन्य प्रसाद दिए जाते हैं।
मन्दिर हाल में दीवारों के साथ-साथ कुर्सियां रखी हुई हैं यहां वृद्ध लोग बैठ सकते हैं।
भीतरी छत का डिजाईन शीशे नुमां है जिस रौशन भीतर प्रवेश करती है। छत के ऊपर गुवंद सुशोभित है। यहां हिन्दू धर्म सभी व्रत-
त्यौहार मनाए जाते हैं विशेष तौर पर महा शिवरात्रि, नवरात्रे, होली, जन्माष्टमी, गणेष चतुर्थी, करवा चौथ, दीवाली तथा वर्ष में
एक बार जागरण किया जाता है। जिस में भारत के प्रसिद्ध जागरण गायक बुलाए जाते हैं। यहां अनुराधा पौंढवाल, जसपिन्दर
नरूला तथा स्वः नरेन्दर चंचल आदि आ चुके हैं।
विशेष तौर पर राम लीला तथा दशहरा धूम धाम एंव श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
डब्ल स्टोरी मन्दिर में सात सौ से एक एक संगत के लिए लंगर हाल हैं। किचन, डायनिंग हाल लगभग चार सुविधाजनक कमरे हैं।
वैदिक परम्परा की मर्यादा के सभी कार्य किए जाते हैं।
विशेष तौर पर गोरखपुर से प्रकाशित होता कल्याण मैगजीन (कल्याण पत्रिका) के सभी अंक मौजूद हैं, जिनसे प्रवचन, कथाएं,
व्याध्यान, सुक्तियों का प्रयोग किया जाता है।
रविवार को लगभग एक हजार श्रद्धालुओं के लिए भोजन की अवस्था होती है। रविवार को ग्यारह से बारह बजे (सुबह) धार्मिक
प्रवचन-भजन होते हैं। आरती सुबह आठ बजे और शाम को सात बजे।
मन्दिर खुलने का समय सोमवार से शुक्रवार सुबह सात से एक बजे और चार से आठ बजे तक। शरिवार सात से दो बजे तथा चार
से 8 बजे। रविवार को सुबह सात से शाम सात बजे।
इस मन्दिर की सोसायटी के अध्यक्ष सर्व श्री अरविंद ऐरी, सचिव राम ऐरी, धर्मेन्दर शर्मा, चन्द्र मिततल तथा राजेन्दर चंदन
आदि हैं।
आखिर में श्री पंकज दीक्षित जी से संदेश में कहा कि मातृ भूमि से दूर रह कर भी अपनी सांस्कृति, संस्कृति की मर्यादा से जुड़े रहें।
विदेशों में रह कर भी जिजीविषा (जिजीविषा) के साथ-साथ अपनी धर्म संस्कृति से जुड़ना ही देश भक्ति है।

बलविन्दर बालम गुरदासपुर
ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)
एडमिंटन, कनेडा, 91-9815625409

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प्रकृति की असीम भव्यता और विज्ञान की ससीमता का अनूठा सुमेल है: मिन्नेवंका झील, कनेडा https://apnidilli.com/19494/ Sat, 27 Aug 2022 12:22:18 +0000 http://apnidilli.com/?p=19494 मिन्नेवंका झील शहर बैंक, अल्बर्टा, कनेडा, की स्वर्ग स्वरूप झील है। प्रकृति की असीम भव्यता तथा विज्ञान की ससीमता का
अनूठा उदाहरण है मिन्नेवंका झील। मिन्नेवंका झील कनेडा में बैंक नैशनल पार्क के पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी बर्फ
(हिमाच्छादित) के पानी से निमार्ण अलबेली झील है। जो स्वंय अपने वजूद से निकल कर प्राकृति स्वरूप में सुसज्जित है। कनेडा
के प्रसिद्ध पहाड़ी क्षेत्र के शहर बैंक टाऊन साईट से लगभग पांच किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित है भिन्नेवंका। यह झील
लगभग 21 किलोमीटर लम्बी तथा 142 मीटर गहरी है। यह झील कनेडियन पहाड़ी पार्कों में से दूसरी सब से लम्बी झील है।
इस झील तक पहुंचने से पहले सड़क की दाईं ओर एसपैन वृक्षों के घने जंगल नज़र आते हैं तथा बाई और खस्ता हालत की ढलाने
वाले सख्त किरमची, नारंगी, तथा मौलसिरी रंग के चुलबुले दिलकश पहाड़।
इस झील की चारों और लम्बी पैदल यात्रा करने का शानदार आनंदमयी लुत्फ है। इसके ईर्द-गिर्द लम्बे-पतले और छतरीनुमां
शाखाओं वाले एसपैल के वृक्ष अद्भुत दृश्य बनाते हैं। इन वृक्षों के तने बांस की भांति पतले तथा किसी छमकछल्लो सी इकहरे
बदन की खूबसूरत अर्धनगन गोरी कामिनी जैसे। झील के इर्द-गिर्द टेढे मेढे, ऊबड़-खाबड़ खुरदरे भ्रमण रास्ते हैं। जो इस की शोभा
को अलंकारित करते हुए देव लोक का परिणाम देते हैं।
यहां लागे गर्मी के दिनों तथा कम ठंडी के दिनों में ही आते हैं। सवेर से शाम तक लोगों का तांता लगा रहता है। रंग-ब-रंगे पारदर्शी
तम्बूयों में आनंद लेते लोग तथा रंग-ब-रंगी कश्तियों में गोरे गुलाबी खूबसूरत लोग ठंडीठार हवाओं में, जंगलों की राहनुमाई में
जन्नत का नायाब स्वरूप लगते हैं। चप्पूयों से चलती कश्तियां दूर से अद्भुत दृश्य बनाती हुई मर्मस्पर्शी लगती। पारदर्शी पानी में
तैरती कश्तियां किसी चित्रकारी का नमूना नज़र आती। दूर से झील के सामूहिक छोटे-छोटे दृश्य मिलकर ऐसा नज़ारा पेश करते
कि जैसे प्रकृति ने अपनी सुन्दरता के दस्तख्त (हस्ताक्षर) किए हों।
इस झील के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले टिकट लेनी पड़ती है। लोग सपश्विार अपने साथ ब्रैंच, लंच तथा अन्य पकवान-मिष्ठान
साथ लेकर आते हैं। पिकनिक का सारा सामान। अलग-अलग ओवनों (तंदूरों) में पकता मीट तथा (शाकाहारी-मांसाहारी) पदार्थों
की तीखी लज्जतदार खुशबू दूर दूर तक अपना प्रभाव छोड़ती। आग के अंगारों तथा धूएं की उच्चाई में पकते पकवान, झील के
नजारों को जन्नत के समीप ला खड़ा करते। जैसे जन्नत में मेला लगा हो।
झील के समपी दूर-दूर तक कोई भी दुकान नहीं है। पहाड़ों की ताजी स्वच्छ हवा पानी को चूम कर जब सांसो में उतरती है तो
एकाग्रता रोमांचिकता का अनुभव महसूस करती है। एक ललक रूमांटिकता में उतरती है। झील के साथ-साथ घने जंगलों में वन्य
जीवों की हलच ल देखने को मिलती है जिन में खच्चर, हिरण, भालू भेड़िए, एल्क, जंगली भेड़ और प्रचुर मात्रा में पक्षी आवादी
शामिल है। पंक्षियों की सामूहिक मिश्रण आवाजे संगीत तथा गीत को एकाकार करती अच्छी लगती है।
मिन्नेवंका झील वर्तमान में राष्ट्रीय उद्यान प्राकृतिक और सांस्कृतिक महत्व के परिदृश्यों की रक्षा करती है। हालां कि पिछली
शताब्दी में झील के कई बदलाव हुए फिर भी लोग इस की जंगली प्रकृति और छिपे रहस्यों की तलाश जारी रखते हैं। इसी में
मिन्नेवंका झील की आत्मा जीवित है।
एक लम्बी पैदल यात्रा और मांउटेन बाइकिंग ट्रेल उतरी किनारे के साथ-साथ चलती है यह स्वीवर्ट कैम्यन और छह बैककंट्री कैम्प
साई से गुजरती है।
माऊंट आयल्मर जो 3162 मीटर पर पार्क के इस क्षेत्र से सबसे ऊंचा पर्वत है। झील के उत्तर में कुछ दूरी पर स्थित है जो झील की
सुषमा को चार चांद लगा देता है।
यहां सबसे ज्यादा संख्या बच्चों की होती है जो यहां मजे लूटते हैं।
दुनियां में सबसे तंदरूस्त हवा और पानी कनेडा की धरती को नसीब है। झीलें स्वर्ग की पर्याय हैं। दोस्तों अगर आप कनेडा आए तो
मिन्नेवंका को देखना ना भूलना क्योंकि यहां है स्वर्ग की परिभाषा।

बलविन्दर बालम गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)
एडमिंटन, कनेडा +91 9815625409

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