लाइफस्टाइल – Apni Dilli https://apnidilli.com Hindi News Paper Tue, 01 Mar 2022 09:40:29 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://apnidilli.com/wp-content/uploads/2023/09/cropped-logo-1-32x32.jpg लाइफस्टाइल – Apni Dilli https://apnidilli.com 32 32 पावन होली के दौरान बालों तथा त्वचा की देखभाल : शहनाज हुसैन https://apnidilli.com/17778/ Tue, 01 Mar 2022 09:40:29 +0000 http://apnidilli.com/?p=17778 होली का त्यौहार ख़ुशियों ,मस्ती ,रोमांच तथा उत्साह लेकर आता  है / लेकिन रंगों के इस त्यौहार को  हम सब लोग उत्साह से मनाने के साथ ही रंग खेलने से ज्यादा रंग छुड़ाने , त्वचा एवं  बालों को   हुए नुकसान को लेकर टेंशन में  ज्यादा रहते हैं  क्यों क़ि ” बुरा न मानो  होली है” कहकर  रंग फ़ेंकने बाले अल्हड़ युवक युवतियों  की टोलियां पिचकारी ,गुव्वारोँ ,डाई  वा  गुलाल में  बाजार में बिकने बाले   जिन रंगों   का प्रयोग करते हैं उनमें   माइका ,लेड जैसे   हानिकारक रसायनिक   मिले होते हैं    जिससे बाल तथा त्वचा रूखी एवं बेजान हो जाती है , बल झड़ना शुरू हो जाते हैं तथा त्वचा में जलन एवं खारिश शुरू हो जाती है /
आज के युग में बाजार में बिकने बाले रंगों  में हर्बल तथा प्राकृतिक उत्पाद नाममात्र ही होते हैं / लेकिन ऐसे में  आप घर पर छुप कर कतई न बैठें  /अगर आप कॉलोनी के पार्क में खुशनुमा माहौल में दिल खोल कर होली खेलना चाहते हैं तो जमकर रंग खेलने के बाद चुटकियों में रंग छुड़ाने के तरीके बता रही हैं सौंदर्य बिशेष्ज्ञ शहनाज़ हुसैन  
होली का त्यौहार ज्यादातर खुले आसमान में खेला जाता है जिससे सूर्य की गर्मी से भी त्वचा पर विपरित प्रभाव पड़ता है। खुले आसमान में हानिकाक यू.वी. किरणों के साथ-साथ नमी की कमी की वजह से त्वचा के रंग में कालापन आ जाता है। होली खेलने के बाद त्वचा निर्जीव बन जाती है। 
होली के पावन त्यौहार में अपनी त्वचा की रक्षा केे लिए होली खेलने से 20 मिनट पहले त्वचा पर 20 एस.पी.एफ. सनस्क्रीन का लेप कीजिए। यदि आपकी त्वचा पर फोडे़, फन्सियां आदि है तो 20 एसस.पी.एफ. से ज्यादा दर्ज की सनस्क्रीन का उपयोग करना चाहिए। ज्यादातर सनस्क्रीन में माइस्चराईजर ही विद्यमान होता है। यदि आपकी त्वचा अत्याधिक शुष्क हैं तो पहले सनस्क्रीन लगाने के बाद कुछ समय इंतजार करने के बाद ही त्वचा पर माइस्चराईजर का लेप करें। 
आप अपनी बाजू तथा सभी खुले अंगों पर माईस्चराइजर लोशन या क्रीम का उपयोग करें।
होली खेलने से पहले सिर में बालों पर हेयर सीरम या कंडीशनर का उपयोग करें। इससे बालों को गुलाल के रंगों की वजह से पहुंचने वाले सुखेपन से सुरक्षा मिलेगी तथा सूर्य की किरणों से होने वाले नुकसान से भी बचाव मिलेगा। 
आजकल बाजार में सनस्क्रीन सहित हेयर क्रीम आसानी से उपलब्ध हो जाती है। थोड़ी से हेयर क्रीम लेकर उसे दोनों हथेलियों पर फैलाकर बालों की हल्की-हल्की मालिश करें। इसके लिए आप विशुद्ध नारियल तेल की बालों पर मालिश भी कर सकते है। इससे भी रसायनिक रंगों से बालों को होने वाले नुकसान को बचाया जा सकता है।
होली के रंगों से नाखूनों को बचानें के लिए नाखूनों पर नेल वार्निश की मालिश करनी चाहिए। होली खेलने के बाद त्वचा तथा बालों पर जमें रंगों को हटाना काफी मुश्किल कार्य है। उसके लिए सबसे पहले चेहरे को बार-बार साफ निर्मल जल से धोएं तथा इसके बाद कलीजिंग क्रीम या लोशन का लेप कर लें तथा कुछ समय बाद इसे गीले काटन वूल से धो डाले। आंखों के इर्द गिर्द के क्षेत्र को हल्के-हल्के साफ करना न भूलें। क्लीजिंग जैल से चेहरे पर जमें रंगों को धुलने तथा हटाने में काफी मदद मिलती है। अपना घरेलू क्लीनजर बनाने के लिए आधा कप ठण्डे दूध में तिल, जैतून, सूर्यमुखी या कोई भी वनस्पति तेल मिला लीजिए। काटन वूल पैड को इस मिश्रण में डूबोकर त्वचा को साफ करने के लिए उपयोग में लाऐं। शरीर से रसायनिक रंगों को हटाने में तिल के तेल की मालिश महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इससे न केवल रसायनिक रंग हट जाऐंगे बल्कि त्वचा को अतिरिक्त सुरक्षा भी मिलेगी। 
तिल के तेल की मालिश से सूर्य की किरणों से हुए नुकसान की भरपाई में मदद मिलती है। नहाते समय शरीर को लूफ या वाश कपड़े की मदद से स्क्रब कीजिए तथा नहाने के तत्काल बाद शरीर तथा चेहरे पर माइस्चराईजर का उपयोग कीजिए। इससे शरीर में नमी बनाए रखने में मदद मिलेगी।
यदि त्वचा में खुजली हेै तो पानी के मग में दो चम्मच सिरका मिलाकर उसे त्वचा पर उपयोग करें तथा इससे खुजली खत्म हो जाऐगी। इसके बाद भी त्वचा में खुजली जारी रहती है तथा त्वचा पर लाल चकत्ते तथा दाने उभर आते है तो आपकी त्वचा को रंगों से एलर्जी हो गई तथा इसके लिए आपको डाक्टर से आवश्यक सलाह मशवरा जरूर कर लेना चाहिए। बालों को साफ करने के लिए बालों में फंसे सुखे रंगों तथा माईका को हटाने के लिए बालों को बार-बार सादे ताजे पानी से धोते रहिए। इसके बाद बालों को हल्के हर्बल शैम्पू से धोएं तथा उंगलियों की मदद से शैम्पू को पूरे सिर पर फैला लें तथा इसे पूरी तरह लगाने के बाद पानी से अच्छी तरह धो डालिए।
बालों की अंतिम धुलाई के लिए बियर को अन्तिम हथियार के रूप में प्रयोग  किया जा सकता है। बीयर में नीबूं का जूस मिलाकर शैम्पू के बाद सिर पर उडेल लें। इसे कुछ मिनट बालों पर लगा रहने के बाद साफ पानी से धो डालें।
होली के अगले दिन दो चम्मच शहद को आधा कप दही में मिलाकर थोड़ी सी हल्दी में मिलाए तथा इस मिश्रण को चेहरे, बाजू तथा सभी खुले अंगों पर लगा लें। इसे 20 मिनट लगा रहने दें तथा बाद में साफ ताजे पानी से धो डालें।  इससे त्वचा से कालापन हट जाएगा तथा त्वचा मुलायम हो जाएगी। होली के अगले दिनों के दौरान अपनी त्वचा तथा बालों को पोषाहार तत्वों की पूर्ति करें। एक चम्मच शुद्ध नारियल तेल में एक चम्मच अरण्डी का तेल मिलाकर इसे गर्म करके अपने बालों पर लगा लीजिए। एक तौलिए को गर्म पानी में भीगों कर पानी को निचोड दीजिए तथा तौलिए को सिर पर लपेट लीजिए तथा इसे 5 मिनट तक पगड़ी की तरह सिर पर बंधा रहने दीजिए। इस प्रक्रिया को 4-5 बार दोहराईए इसे खोपड़ी पर तेल को जमने में मदद मिलती है। एक घण्टा बाद बालों को साफ ताजे पानी से धो डालिए।
 
लेखिका – अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सौंदर्य विशेषज्ञ है तथा हर्बल क्वीन के नाम से लोकप्रिय है।
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संयुक्त परिवारों की सुंदरता https://apnidilli.com/17765/ Mon, 28 Feb 2022 07:17:14 +0000 http://apnidilli.com/?p=17765 हर परिवार के अपने नियम और कानून होते हैं जिसके हिसाब से उस घर के सदस्यों को अपना जीवन व्यतीत करना होता है। नियम बनाने का तात्पर्य यह नहीं है कि घर के सदस्यों को किन्हीं बेड़ियों में जकड़ा जाता है। नियम और कानून इसलिए बनाए जाते हैं ताकि घर के सभी सदस्यों में आपसी तालमेल बना रहे और बिना किसी दिक्कत परेशानी के जीवन आगे बढ़ता रहे।
संयुक्त परिवार के नियम एकल परिवार के नियमों से थोड़े हटकर हो सकते हैं क्योंकि वहां सदस्यों की संख्या ज्यादा होने पर आपसी मतभेद होने के चांस भी एकल परिवारों की तुलना में ज्यादा हो सकते हैं।
 परंतु यदि बात संयुक्त परिवार से एकल परिवार में आकर रहने की होती है तो मुझे नहीं लगता कि कुछ मामूली सी परेशानियों को छोड़कर किसी को भी बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हो। परिपक्वता भी तो कोई चीज होती है।एक परिवार से दूसरे परिवार में आने के बाद व्यक्ति स्वयं को वहां के अनुसार ढाल लेता है। हां ,यह अवश्य है कि उसे नए माहौल में ढलने में कुछ समय अवश्य लगता है जहां पहले उसे गिने-चुने चार या पांच लोगों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता था, वहीं अब संयुक्त परिवार में आने के पश्चात सदस्यों की संख्या ज्यादा होने की वजह से उसे समन्वय स्थापित करने के लिए अधिक आत्मविश्वास, सहनशीलता और व्यापक दृष्टिकोण और बुद्धिमता की आवश्यकता पड़ती है।
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि बच्चे केवल इन सब छोटी मोटी दिक्कत और परेशानियों की वजह से अलग रहना चाहते हैं।व्यक्तिगत स्वतंत्रता सभी को अच्छी लगती है परंतु व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अपने कुछ नुकसान भी हैं जिन्हें आज की जनरेशन के बच्चे भी भली प्रकार समझने लगे हैं और यही वजह है कि अब एक बार फिर से एकल परिवारों का स्थान संयुक्त परिवार लेने लगे हैं ।
आज की पीढ़ी के बच्चे भी चाहते हैं कि वे अपने सभी रिश्तों जैसे चाचा ,ताऊ और कजिंस वाले परिवार में रहें ,मस्ती करें,विभिन्न पारिवारिक मौकों को मिलकर सेलिब्रेट करें और इन सब के लिए वे काफी चीजों में समर्पण का भाव रखने से भी पीछे नहीं हटते हैं,और बस यही सुंदरता है संयुक्त परिवार की।
पिंकी सिंघल
अध्यापिका-शालीमार बाग, दिल्ली
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नहीं रहीं लता दीदी https://apnidilli.com/17623/ Mon, 07 Feb 2022 10:16:45 +0000 http://apnidilli.com/?p=17623 *सुरों की सरगम की थीं हर लय की आवाज़*
*तुम से ही तो बुलंद थी संगीत की परवाज़*
सुरों की साम्राज्ञी ,हर दिल अज़ीज़, हिंदुस्तान की पहचान और अपनी मधुर आवाज से हर किसी को दीवाना बना देने वाली महान शख्सियत स्वर कोकिला लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं रहीं। लता मंगेशकर का वास्तविक नाम हेमा मंगेशकर था। उनका जन्म 28 सितंबर 1929 में इंदौर में हुआ था। लता दीदी के यूं हम सब को छोड़ जाने के बाद एक युग का अंत हुआ है। सुर कोकिला अपने संगीत के माध्यम से पूरे विश्व के बीच सदैव जीवित रहेंगी, उनकी आवाज हमारे दिलों को ऐसे ही धड़काती रहेगी।
92 साल की लता मंगेशकर ने 6 फरवरी 2022 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली जहां वह पिछले 28 दिन से दाखिल थीं। लीजेंडरी सिंगर लता जी ने आखिर कोविड के सामने हिम्मत हार ही दी और हम सब को सदा सदा के लिए रोता छोड़ परलोक गमन कर गई।उनके निधन से पूरा बॉलीवुड जगत सदमे में है। देश के प्रधानमंत्री समेत अनेक दिग्गजों ने महान गायिका लता मंगेशकर जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।
उनके निधन से ना केवल भारत अपितु पूरे विश्व में शोक की लहर दौड़ गई है ।बॉलीवुड में उनका निधन एक अपूरणीय क्षति बताया जा रहा है। कोरोना होने के साथ-साथ उन्हें निमोनिया की शिकायत भी हो गई थी जिसकी वजह से उनकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी और 6 फरवरी 2022 रविवार की सुबह उन्होंने अपनी अंतिम सांसे लीं।
उनके करियर और जीवन से संबंधित बातें करें तो लता मंगेशकर भारत की सबसे अधिक लोकप्रिय गायिका रही जिन्हें भारत सरकार की तरफ से भारत रत्न दिया गया। उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर खुद को संगीत को समर्पित कर रखा था ।उनके पिताजी का नाम दीनानाथ मंगेशकर था जो स्वयं एक कुशल रंगमंच के गायक थे। उनसे ही लता जी ने संगीत की शिक्षा ली। उनके परिवार में लता जी की बहनें आशा ,उषा और मीना भी संगीत सिखा करती थी।
सत्य है कि प्रत्येक सफल इंसान को जीवन में अनेक संघर्षों से गुजरना पड़ता है ।ऐसा ही लता जी के साथ भी हुआ। बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने के लिए लता जी को भी बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ा,बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी, परंतु अपनी लगन, मेहनत और प्रतिभा के दम पर उन्होंने कामयाबी हासिल की।
लता मंगेशकर को राष्ट्र की आवाज, सेहराबदी की आवाज ,भारत कोकिला, स्वर साम्राज्ञी आदि नामों से भी जाना जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो लता मंगेशकर एक मैजिक वॉइस है जिन्होंने 30000 से भी ज्यादा गाने गाए।
अपने पिता की मृत्यु के बाद लता मंगेशकर ने ही अपने सभी छोटे भाई बहनों को संभाला, और घर की सारी जिम्मेदारी निभाई। 1945 में लता जी मुंबई आ गई। 1949 में उन्होंने अनेक हिट फिल्मों में गाने गाए और यहां से शुरू हुआ उनका सुहाना सफर।लता जी को सर्वाधिक गीत रिकॉर्ड करने का भी गौरव प्राप्त है। फिल्मी और गैर फिल्मी दोनों ही प्रकार के गाना गाने में लता जी को महारत हासिल थी फिल्मी जगत में उनकी एक अनूठी पहचान बनी हुई थी जो उनके चले जाने के बाद भी ऐसी ही रहने वाली है। उनके प्रशंसकों की संख्या अनगिनत है।उन्होंने अनेक प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया और सभी ने उनकी प्रतिभा को खूब सराहा। इनकी सुरीली आवाज की वजह से ही सैंकड़ों फिल्में ने खूब कमाई की। इनमें से कुछ फिल्में थी ,महल, बरसात ,बड़ी बहन ।
ओ सजना बरखा बहार आई जैसे गीतों से सबका दिल जीतने वाली लता दीदी की जितनी तारीफ की जाए कम ही है ।हर गीत में अपनी आवाज के जादू से जीवंतता भरने वाली लता जी ने युगल गीत भी गाएं हैं ।देशभक्ति गीत गाने में तो लताजी का कोई सानी ही नहीं है, “ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी” देश भक्ति गीत को सुनकर शायद ही ऐसा कोई जन होगा जिसकी आंखों से आंसू न बह निकले इस गाने को सुनकर सब अति भाव विभोर हो जाते हैं।
 कुछ प्रसिद्ध फिल्मों के गानों में लता जी की आवाज ने अपना जादू बिखेरा। इन फिल्मों में अनारकली, राम लखन हिना, नागिन ,बरसात, सत्यम शिवम सुंदरम,मुगले आज़म, अमर प्रेम ,गाइड ,प्रेम रोग इत्यादि हैं।लता जी ने गीत ,भजन ,संगीत के हर क्षेत्र में अपनी कला का प्रदर्शन किया है ।कोई भी गीत चाहे वह शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो अथवा पाश्चात्य धुन पर हर गीत को लता जी की आवाज से जीवंतता मिलती थी और जिसके जादू से श्रोता उनकी ओर खींचे चले जाते थे।
 पुरस्कारों की गिनती की बात करें तो लता जी को ना जाने कितने ही अवार्ड मिले। 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड लता जी के नाम है ।भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न 2001 लताजी को दिया गया ।इसके अलावा पद्म भूषण,पद्म विभूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, राजीव गांधी पुरस्कार, नूरजहां पुरस्कार ,महाराष्ट्र भूषण इस तरह के ना जाने कितने ही पुरस्कार दीदी ने अपने नाम किए हैं। उन का सबसे बड़ा पुरस्कार यही था कि उन्होंने न केवल पुरुस्कार जीते अपितु  परलोक गमन के बाद भी हम सभी के दिलों में सदैव जीवित रहेंगी इससे बढ़कर पुरस्कार शायद ही किसी के जीवन में कोई अन्य होता हो।
उनके गाए हुए कुछ पसंदीदा गाने इस प्रकार हैं, हमको हमी से चुरा लो, ऐसा देश है मेरा, हो गया है तुझको तो प्यार सजना ,दुश्मन ना करे दोस्त ने वो काम किया है, ऐ मालिक तेरे बंदे हम ,प्यार हुआ इकरार हुआ ,आयेगा आयेगा आयेगा आनेवाला, मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं ,कबूतर जा जा जा ,सुन साहिबा सुन, दीदी तेरा देवर दीवाना ,दिल तो पागल है, मेरे ख्वाबों में जो आए ,पंख होते तो उड़ जाती रे ,आ लौट के आजा मेरे मीत ,जिंदगी उसी की है, मन डोले मेरा तन डोले ,प्यार किया तो डरना क्या आदि आदि।
जीवन का अंत तो सभी का होता है परंतु चांद सूरज जैसा बनकर कोई कोई कोई चमकता है लता दीदी उन्हीं चांद तारों जैसी हैं जो सदा सदा संगीत और सुरों के फलक पर चमकती रहेंगी और हम सब को सदैव प्रेरित करती रहेंगी।
*जहां भी जाएगा रोशनी लुटाएगा*
*किसी चिराग का कोई मकान नहीं होता*
पिंकी सिंघल
अध्यापिका
शालीमार बाग दिल्ली
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लाख तरक्की के बावजूद हम बुजुर्गों का ख्याल रखने में पीछे हैं :  अतुल मलिकराम https://apnidilli.com/15961/ Wed, 14 Jul 2021 12:06:41 +0000 http://apnidilli.com/?p=15961 बुढ़ापा किसी व्यक्ति की उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है, जिसमें प्रवेश करने के बाद उसके जीवन में एक बार फिर से बचपन दस्तक देता है। वही बचपन, जिसके लिए हम कहते हैं कि यह एक बार चला गया, तो फिर कभी लौटकर नहीं आएगा। वृद्धावस्था में बचपन का पुनः आगमन वास्तव में अद्भुत और अतुलनीय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुजुर्ग व्यक्ति का स्वभाव एक बच्चे की तरह ही होता है, छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढने की आदत और भावनाओं का गहरा सागर, बड़े-बूढ़ों के दिलों में एक बच्चे की तरह ही उमड़ता है। जिस तरह एक छोटे बच्चे को हर क्षण अपनी माता के आँचल और पिता के साए से घिरे रहना बेहद लुभाता है, ठीक इसी प्रकार बुजुर्गों को भी अपने बच्चों को अपने आसपास हँसते-खेलते देख उत्तम आनंद की अनुभूति होती है। वे उम्र के इस अद्भुत पड़ाव में अपनों का प्यार और साथ चाहते हैं। इसलिए उनके साथ बैठकर भोजन करें, उनके साथ टहलने जाएं, उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखें, उन्हें क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ें, उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखें, उन्हें आश्वासन दें कि हर एक स्थिति में आप उनके साथ हैं।
हम आए दिन विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की कर रहे हैं, लेकिन सत्य यह है कि इन सबके बावजूद हम बुजुर्गों का ख्याल रखने में काफी पीछे हैं। जिन्होंने हमें ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया, हमारी टूटी-फूटी बोली से जो जग जीत जाया करते थे, जिनकी गोद में हम पले-बढ़े, जिनकी आँचल की छाँव ने हम पर कभी दुःख रूपी धूप का साया तक नहीं पड़ने दिया, जिनके कांधों पर बैठकर हम दुनिया की सैर कर आते थे, जो खुद सारी रात जागकर हमें लोरियाँ सुनाते रहे, ताकि हम चैन की नींद सो सकें, जिन्होंने हमारे भीतर संस्कारों की मजबूत नींव गढ़ी, क्या हम उनके इन उपकारों को वास्तव में नजर अंदाज करने का विचार भी अपने मन में ला सकते हैं? अपने जीवन के अंतिम दौर में वे हमसे क्या चाहते हैं? सिर्फ परिवार का साथ। है न!! लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम उनसे उनका बचपन और बुढ़ापा दोनों छीन रहे हैं। भले ही हमारा उद्देश्य नकारात्मक न हो, लेकिन कमाने की होड़ में हम घर की बुनियाद हिलाकर यानी बुजुर्गों का साथ छोड़कर एकल परिवार की नींव गढ़ रहे हैं, हम पूरे परिवार को जाने-अनजाने में तोड़ने का कारण बन रहे हैं, उनसे उनके सबसे अच्छे और सच्चे दोस्त, उनके नाती-पोते छीनने की वजह बन रहे हैं। दादी-नानी की कहानियां भी अब इस वजह से विलुप्त होती नजर आ रही हैं।
कारण कुछ भी हो, लेकिन यह सत्य है कि बीते कुछ वर्षों में एकल परिवार का चलन काफी तेजी से बढ़ा है, ऐसे में बच्चे और बुजुर्ग दोनों ही एक-दूसरे के प्यार से वंचित हो रहे हैं। बहुत कम ही परिवार बचे हैं, जो बुजुर्गों के आशीर्वाद से फलीभूत हैं। क्या वास्तव में बुजुर्गों के आशीर्वाद के बिना हमारे जीवन के कुछ मायने हैं? बदलते जमाने के साथ आज कई बुजुर्ग अपने अंतिम दिन वृद्धाश्रम में गुजारने को मजबूर हो चले हैं। क्या उन्हें ठेस पहुँचाकर हम भविष्य में खुश रह पाएंगे? यह कतई न भूलें, कि आज हमारे द्वारा किए गए कर्म कल हमें ढूंढते हुए जरूर हमारे सामने आएँगे। मंदिरों में भारी मात्रा में दिया गया चढ़ावा और नित दिन भी यदि हम दान-धर्म करें, तो हमें इसके लिए धूल के कण बराबर भी पुण्य फल प्राप्त नहीं होगा, यदि हम माता-पिता को पूजने में असमर्थ हैं, क्योंकि शास्त्रों में भी माता-पिता को भगवान् का स्थान दिया गया है। इसलिए स्वयं से पहले उनका ख्याल रखें और उनके बुढ़ापे का सहारा बनें। जिनके सिर पर बुजुर्गों का हाथ है, सही मायने में वे ही दुनिया के सबसे धनी और सफल व्यक्ति हैं।
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