life style – Apni Dilli https://apnidilli.com Hindi News Paper Fri, 06 May 2022 12:12:54 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://apnidilli.com/wp-content/uploads/2023/09/cropped-logo-1-32x32.jpg life style – Apni Dilli https://apnidilli.com 32 32 “माँ की महिमा” https://apnidilli.com/18530/ Fri, 06 May 2022 12:12:54 +0000 http://apnidilli.com/?p=18530 भावना ठाकर ‘भावु’ 
बेंगलोर । जिस कोख में नौ महीने रेंगते मैं शून्य से सर्जन हुई उस माँ की शान में क्या लिखूँ, लिखने को बहुत कुछ है पर आज बस इतना ही लिखूँ कि, लिखी है मेरी माँ ने अपनी ममता की स्याही से मेरी तकदीर, रात-रात भर जाग कर मेरी ख़ातिरदारी में अपनी नींद गंवाई है कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं”।
“माँ को दिल में जगह न दो ना सही पड़ी रहने दो घर के एक कोने में पर वृध्धाश्रम की ठोकरें मत खिलाओ माँ की जगह वहाँ नहीं” कैसे कोई अपनी जनेता के साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है, जिसकी कोख में नौ महीने रेंगते बूँद में से तीन चार किलो का पिंड बना हो, जिनके खून का एक-एक कतरा पीकर पला बड़ा हो उस माँ को वृध्धाश्रम की ठोकर खाने के लिए छोड़ते कलेजे पर करवत नहीं चलती होगी?
मातृ दिवस पर त्याग की मूर्ति को चंद शब्दों में ढ़ालकर कृतघ्नता व्यक्त कैसे करें कोई? माना कि एक दिन पर्याप्त नहीं होता माँ के गुणगान गाने के लिए, पर जिसने भी मातृ दिवस मनाने का ये चलन या परंपरा बनाई उनको कोटि-कोटि धन्यवाद। अगर ये खास दिन नहीं होता तो हम माँ के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करने से बिलकुल चूक जाते। कम से कम इसी बहाने माँ के नि:स्वार्थ त्याग को सराहने का हमें मौका तो मिलता है। बाकी तो माँ से हम लेनदार की तरह लेते ही रहते है।
बच्चों के लिए उपर वाले ने दिया अनमोल उपहार और ज़िंदगी के रंगमंच का एक अहम किरदार होती है माँ। माँ चाहे अनपढ़ ही क्यूँ न हो अपने बच्चों को जीवन जीने का हर सबक सिखाती है। संस्कारों के गहनों से सजाती है,  किताब महज़ ज्ञान पाने का ज़रिया है, पर माँ अपने बच्चों को किताबों में छिपी ज़िंदगी की असली हकीकत का सार समझाते हर चुनौतियों से अवगत कराते सक्षम योद्धा बनाती है। ज़िंदगी गाथा है संघर्षों की उस गाथा का भार हल्का कैसे हो उस राह पर ऊँगली पकड़ते ले जाती है।
क्या लिखें क्या-क्या होती है माँ? शक्ति और सहनशीलता का स्त्रोत, परम्परा और आधुनिकता का अभूतपूर्व संगम, जीवंतता और निर्लेपता का विलक्षण रुप, एक गतिशील भाव, धर्म और कर्म का सुविचारित मिश्रण और बच्चों के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज़्बा होती है माँ।
होते है बच्चें टहनी से नाजुक उनको बेहतरीन बरगद बनाती है माँ, ईश्वर की रचना से अन्जान बालक को प्रार्थना के ज़रिए अमूर्त रुप से मिलवाती है माँ..माँ, माँ है, माँ गुरु है, माँ पिता है और माँ सखा भी है, ज़िंदगी के आत्मबोध से लेकर मृत्युबोध की महिमा भी समझाती है। पास बिठाकर गले लगाकर बच्चों के झरने से अडोल मन में संस्कारों का सागर सिंचती है, बच्चों के भविष्य को जो झिलमिलाता बनाता है वह रोशनी का टुकड़ा है माँ और ज़िंदगी के हर रंगों से बच्चों को रुबरु करवाता कैनवास है।
अपने बच्चों की हर गलती को माफ़ करने का मशीन होती है माँ।
माँ का कोई पर्याय नहीं, जब नहीं रहती तब ज़िंदगी में एक शून्यावकाश छा जाता है, ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी की चुनौतियों से लड़ने का हथियार चला गया हो। माँ बच्चों के जीवन की बुनियाद होती है, जीवन सफ़र की राहबर होती है माँ के बिना संसार ही अधूरा है। माँ का दिल कभी मत दुखाना, बच्चों के लिए माँ की मांगी दुआ उपरवाले की चौखट तक अचूक पहुँचती है। जब दिल दुखता है तब माँ बच्चों को बद दुआ कभी नहीं देती, पर जब एक माँ की आह निकलती है तो ईश्वर की आत्मा रोती है और उस रुदन का असर न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।
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“मानव और मशीन में फ़र्क समझो” https://apnidilli.com/18528/ Fri, 06 May 2022 12:11:12 +0000 http://apnidilli.com/?p=18528 भावना ठाकर ‘भावु’ 
बेंगलोर।  मशीन के भीतर, मशीन ही धड़कता है भावनाओं के भंडार से सराबोर दिल सिर्फ़ इंसान के शरीर में ही धड़कता है।तो क्यूँ आज-कल हम हमारी परवाह में धड़क रहे दिलों को नज़र अंदाज़ करते मशीन के भीतर परवाह ढूँढ रहे है?
“छोटे से मशीन पर अंगूठा चलाते लोगों के मन में भी क्या फ़ितूर छाया है, अपनों को छोड़ परायों से प्रीत का ज़माना आया है”
क्यूँ हम अपनों से दूर और आभासी लोगों के करीब होते जा रहे है? समाज की ये बहुत बड़ी विडंबना है। संयुक्त परिवार एकल-दुकल दिख रहे है। भाई भाई से जुदा हो रहे है, पति-पत्नी से और बच्चें माँ-बाप से। और यूँ पूरे परिवार तितर-बितर हो रहे है। इंसान के दिमाग में इतना वैमनस्य भर गया है की प्यार, परवाह, सम्मान के लिए जगह ही नहीं बची। उसके विपरीत सब गैरों में वह अपनापन ढूँढ रहे है, वो भी उन गैरों में जो न कभी दिखते है, न मिलते है, न हीं कोई काम आते है। सिर्फ़ उपरी सतह का प्यार जताकर खुश करने में माहिर होते है।
ज़रा सोचो साथ में रखे बर्तन भी टकराव पर आवाज़ करते है, तो हम बर्तनों को फैंक नहीं देते। तो ज़ाहिर सी बात है एक छत के नीचे रहते लोगों के बीच भी मतभेद होते रहेंगे, इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं की रिश्ता तोड़ लिया जाए अपनों को दूर कर दिया जाए। अपने जैसे भी हो मुसीबत के वक्त वही काम आएंगे, उसी को परवाह होगी। यह जो मोबाइल जैसे छोटे से मशीन के भीतर से आपकी तस्वीरों पर या पोस्ट पर लाइक कमेन्ट से वाह-वाही कर रहे है उसमें से एक भी काम आने वाला नहीं।
आभासी लोग बेशक टाइम पास के लिए बनते है दोस्त, कहाँ पाँच पचास रुपये खर्च करने है आपके लिए उनको, सिर्फ़ हाय हैलो गुड मार्निग, गुड नाइट ही तो करनी है। उस पर भी एक दो बार रिप्लाइ ना देने पर आप अनफ्रेंड कर दिए जाओगे या ब्लाॅक लिस्ट की शोभा बढ़ाते नज़र आओगे। इसलिए याद रखिए आभासी दोस्तों पर इतराते अपनों के प्रति दुर्व्यवहार आपको परिवार और समाज से दूर कर देगा।
है अपने जो साथ तो जीवन आसान है, परायों के प्रेम में वो बात नहीं जो अपनों की नाराज़गी में है। हमारे अपने चाहे कितने नाराज़ हो पर हमारे चेहरे पर चिंता की हल्की सी शिकन भी पहचान कर गले गलाकर कहेंगे चिंता मत कर ‘मैं हूँ न’ मैं हूँ न ये तीन शब्द हमारा आधा दु:ख हर लेते है। पर क्या दूर बैठा आभासी महज़ कहने भर को अपना इस भाव को महसूस कर पाएगा? हरगिज़ नहीं उनकी अपनी एक दुनिया है, अपना परिवार है, वह खुद अपनी ज़िंदगी में इतना उलझा है कि वह भी आपकी तरह छोटे से मशीन में चंद पल दिमाग तरोताज़ा करने ही आता है न कि आपको सहारा देने। उनका सहारे ज़िंदगी का सफ़र तय नहीं होगा। जो करीब है वही ज़िंदगी के सफ़र में हाथ थामकर आगे बढ़ने में सहाय करेगा।
जवानी के जोश में सब अपनों को परे कर लेते है, पर अकेलेपन का अजगर अभी नहीं बुढ़ापे में गरदन मरोड़ेगा तभी कोई अपना आसपास नहीं होगा। पर बेशक वही अपने आपकी एक पुकार पर दौड़े चले आएंगे। तो अपनों और आभासियों में फ़र्क समझो और परिवार को गले लगाकर, मिल झुलकर अपनों का हाथ थामें ज़िंदगी के सफ़र को आसान बनाओ।
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“हिपॉक्रसी यानी कि (पाखंड) हमारे समाज की झगमगाती पहचान है”  https://apnidilli.com/18525/ Fri, 06 May 2022 12:09:32 +0000 http://apnidilli.com/?p=18525 भावना ठाकर ‘भावु’ 
बेंगुलूरु, कर्नाटक। हमारे समाज में उपर से सारी बातें, सारे मुद्दें सात्विक लगते है। कुरेदकर देखेंगे तब पता चलेगा हर इंसान के मानस खोखले और पाखंड से भरे पड़े है।
इक्कीसवीं सदी में आधुनिकता सिर्फ़ लाइफस्टाइल बदलने में ही कामयाब रही है, कुछ लोगों की मानसिकता आज भी अट्ठारहवीं सदी पर खड़ी मुस्कुरा रही है। हर इंसान के व्यवहार में हिपोक्रेसी पनप रही है। खासकर महिलाओं के प्रति दोहरा व्यवहार सोचने पर मजबूर करता है। एक तरफ़ हम कहते है हम इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ पर खड़े है विचारों में मुखरता लानी चाहिए, और दूसरी तरफ़ हर रोज़ पत्रिकाओं में स्त्रियों के प्रति हो रहे अत्याचारों की भरमार छपती है। कुछ मर्दों को हर राह चलती अकेली लड़की मौका लगती है, क्यूँ उसे कोई अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझता। इस आधुनिक युग में बेशक स्त्रियों की परिस्थिति में कुछ बदलाव आया भी है पर कितनी प्रतिशत महिलाएं आज संपूर्ण सुखी और आज़ाद है?
जैसे हाथी के दांत चबाने के और दिखाने के और होते है वैसे ही समाज में स्त्रियों के प्रति दोहरा अभिगम दिख रहा है।
हम समझते है की आज की स्त्री आज़ाद और सुखी है, अपने दायरे से निकलकर आसमान छू रही है, पर..पर कितनी औरतें? महज़ 40% बाकी औरतों के लिए आज भी वही अठारहवीं सदी वाले हालात ही रहे है।
लोग कहते है हमने हमारी बेटी को हमने एमबीए तक पढ़ाया, कोई कहता है हमने बेटी को डाॅक्टर बनाया पर इनके पीछे छुपी मानसिकता यही रहती है कि बेटी को अच्छा घर और वर मिले ताकि ज़िंदगी भर के लिए बेटी की फ़िक्र न करनी पड़े। बहुत कम लोग बेटी को पैरों पर खड़ी रहने के लिए पढ़ाते है।
आज भी कुछ स्त्रियों के लिए कुछ भी नहीं बदला। हाई सोसायटी से लेकर पिछड़ी जाति तक स्त्रियां घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती है। हमें सिर्फ़ हमारे आसपास के वातावरण का पता होता है, पर आज भी हर रोज़ कहीं न कहीं से स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों की खबरें छपती रहती है। आम इंसानों की हरकतें बाहर आती है और उपरी वर्ग की दब कर रह जाती है। हमारी आँखों के सामने आज भी बहुत सारी स्त्रियों का शोषण होते हम देखते है। सिर्फ़ हमारे देश में ही नहीं। हर देश में महिला पुरुष कर्मचारी सहकर्मी के हाथों यौन उत्पीड़न की शिकार होती ही है। जिन देश और वर्ग को हम पढ़ा लिखा और आधुनिक समझते है वहाँ भी औरतें शोषण का शिकार होती है।
लिबरल पार्टी ऑफ ऑस्ट्रेलिया की पूर्व कर्मचारी ब्रिटनी हिगिंस ने कहा था कि एक मंत्री के कार्यालय में उनके सहयोगी ने उनका बलात्कार किया, हिगिंस की इस कहानी के सामने आने के बाद कई स्त्रियों ने अपने साथ हुए यौन शोषण और दुराचार की बातें साझा की। सेक्स डिस्क्रिमिनेशन कमिश्नर केट जेनकिंस ने कहा है कि पीड़ितों में काफ़ी बड़ी संख्या महिलाओं की है। सेट द स्टैंडर्ड शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में पाया गया कि 51% कर्मचारी किसी न किसी रूप में बुली, यौन उत्पीड़न और यौन हमले की कोशिश का शिकार होती है।
आज भी बहुत सारी बहनें पितृसत्तात्मक सोच की शिकार है और शराबी पतियों के हाथों प्रताड़ित होती रहती है। बहुत कम माँ बाप-हिम्मत करते है ससुराल में दु:खी बेटी को वापस लाने की। और ज़्यादातर बेटियां भी बहुत सारी वजहों से या तो सहती रहती है या स्यूसाइड कर लेती है। अभी वो दिन बहुत दूर है जब हर स्त्री आज़ादी की सांस ले पाएगी। दहेज़ के मामले में भी दो राय दिख रही है बेटी को दहेज देना नहीं चाहते, पर बहू से दहेज की उम्मीद जरूर रखते है। क्यूँ? तो कहेंगे बेटे को पढ़ाने में लाखों खर्च किए है। अरे तो क्या बहू के बाप से वसूल करोगे? आपके बेटे को इतना दमदार बनाओ की खुद के दम पर आगे बढ़े और पत्नी के माँ-बाप की भी ज़िम्मेदारी उठाएं। दहेज के मामले में भी कई लड़कियाँ दमन सहती है या तो खुदकुशी कर लेती है।
“ज़हर से भी ज़हरिली ज़िंदगी की सच्चाई है, रुबरु होती है ज़िंदगी जिसकी कोख में वही ज़िंदगी के हसीन पलों की मोहताज होती है”
आए दिन चार महीने की बच्ची से लेकर पच्चास साल की औरत के साथ हो रहे बलात्कार की घटनाएं पत्रिकाओं की शोभा बढ़ाती रहती है। कहीं सबूतों के अभाव में कहीं बदनामी के डर से किस्से दब जाते है। तो कभी कुछ किस्सें बड़े बड़े घरानों की आन, बान और शान के आगे दम तोड़ते हार जाते है। कायदे कानून की कछुआ चाल जितनी मंद कारवाई और शक की बीना पर दरिंदों को छोड़ने वाली नीति भी एक कारण है ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देने का।
स्त्री दर्द को हीरों की तरह पहनती है, स्त्री का जिस्म ज़िम्मेदारी, अवहेलना, तानें, उल्हाने, वहशीपन, दरिंदगी, मार और पितृसत्तात्मकता के ज़ेवर से सजा है। यह जो धरती के साथ तुलना करते हुए शक्ति के रुप में सदियों से स्थापित कर दी गई है उस सम्मान का खामियाजा भुगत रही है हर स्त्री। स्त्री ज़ात जो ठहरी, लादी गई रवायतों के विद्रोह में सर उठाना शोभा कहाँ देता है..अभी दूर है वो दहलीज़ जिस पर बैठे पीठ पर लदे बोझ को उतार फैंकेगी। स्त्री सांसारिक सुखों को चखने की ज़ुर्रत नहीं करती, उसे सीखाया गया है समर्पित होना, आँसूओं का स्वाद भाता हो जिसे उसके आगे क्यूँ कोई परोसेगा मुस्कान की मीठाई। तो क्या हुआ कि नामी परिवार से है, तो क्या हुआ कि शराबी और दरिंदे सरताज की जोरू है, तो क्या हुआ कि आम औरत है, है तो महज़ अबला हर किसीको हक है अबला के उपर अत्याचार करने का।
उपर उठने की जद्दोजहद की कोई गुंजाइश ही नहीं क्यूँकि पल-पल मरने के लिए ही लड़कियां जन्म लेती है। सदियों से चली आ रही परंपरा के यज्ञ में समिध सी होमी जाती है अबलाएं, जन्म होते ही बेटी का आह निकल जाती है परिवार वालों की, लो बेटी हुई….जो जन्म से ही अनमनी हो उसके जिस्म पर दर्द ही शोभा देता है। सर न उठा सके इसी फ़िराक में सहनशीलता की देवी का बिरुद थमा दिया सदियों पहले समाज के ठेकेदारों ने। उस धरोहर को संभालती स्त्री की परवाज़ आज भले चाँद तक पहुँच चुकी हो, पर कहीं न कहीं शामिल होती है मर्दाना अहं की सियासतों में।
बीत जाएगी और कई सदियाँ यूँहीं दर्द से लिपटे, पाखंडी समाज को मुखर स्त्री अच्छी तो लगती है, बशर्ते वह अपनी नहीं दूसरों की।
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पावन होली के दौरान बालों तथा त्वचा की देखभाल : शहनाज हुसैन https://apnidilli.com/17778/ Tue, 01 Mar 2022 09:40:29 +0000 http://apnidilli.com/?p=17778 होली का त्यौहार ख़ुशियों ,मस्ती ,रोमांच तथा उत्साह लेकर आता  है / लेकिन रंगों के इस त्यौहार को  हम सब लोग उत्साह से मनाने के साथ ही रंग खेलने से ज्यादा रंग छुड़ाने , त्वचा एवं  बालों को   हुए नुकसान को लेकर टेंशन में  ज्यादा रहते हैं  क्यों क़ि ” बुरा न मानो  होली है” कहकर  रंग फ़ेंकने बाले अल्हड़ युवक युवतियों  की टोलियां पिचकारी ,गुव्वारोँ ,डाई  वा  गुलाल में  बाजार में बिकने बाले   जिन रंगों   का प्रयोग करते हैं उनमें   माइका ,लेड जैसे   हानिकारक रसायनिक   मिले होते हैं    जिससे बाल तथा त्वचा रूखी एवं बेजान हो जाती है , बल झड़ना शुरू हो जाते हैं तथा त्वचा में जलन एवं खारिश शुरू हो जाती है /
आज के युग में बाजार में बिकने बाले रंगों  में हर्बल तथा प्राकृतिक उत्पाद नाममात्र ही होते हैं / लेकिन ऐसे में  आप घर पर छुप कर कतई न बैठें  /अगर आप कॉलोनी के पार्क में खुशनुमा माहौल में दिल खोल कर होली खेलना चाहते हैं तो जमकर रंग खेलने के बाद चुटकियों में रंग छुड़ाने के तरीके बता रही हैं सौंदर्य बिशेष्ज्ञ शहनाज़ हुसैन  
होली का त्यौहार ज्यादातर खुले आसमान में खेला जाता है जिससे सूर्य की गर्मी से भी त्वचा पर विपरित प्रभाव पड़ता है। खुले आसमान में हानिकाक यू.वी. किरणों के साथ-साथ नमी की कमी की वजह से त्वचा के रंग में कालापन आ जाता है। होली खेलने के बाद त्वचा निर्जीव बन जाती है। 
होली के पावन त्यौहार में अपनी त्वचा की रक्षा केे लिए होली खेलने से 20 मिनट पहले त्वचा पर 20 एस.पी.एफ. सनस्क्रीन का लेप कीजिए। यदि आपकी त्वचा पर फोडे़, फन्सियां आदि है तो 20 एसस.पी.एफ. से ज्यादा दर्ज की सनस्क्रीन का उपयोग करना चाहिए। ज्यादातर सनस्क्रीन में माइस्चराईजर ही विद्यमान होता है। यदि आपकी त्वचा अत्याधिक शुष्क हैं तो पहले सनस्क्रीन लगाने के बाद कुछ समय इंतजार करने के बाद ही त्वचा पर माइस्चराईजर का लेप करें। 
आप अपनी बाजू तथा सभी खुले अंगों पर माईस्चराइजर लोशन या क्रीम का उपयोग करें।
होली खेलने से पहले सिर में बालों पर हेयर सीरम या कंडीशनर का उपयोग करें। इससे बालों को गुलाल के रंगों की वजह से पहुंचने वाले सुखेपन से सुरक्षा मिलेगी तथा सूर्य की किरणों से होने वाले नुकसान से भी बचाव मिलेगा। 
आजकल बाजार में सनस्क्रीन सहित हेयर क्रीम आसानी से उपलब्ध हो जाती है। थोड़ी से हेयर क्रीम लेकर उसे दोनों हथेलियों पर फैलाकर बालों की हल्की-हल्की मालिश करें। इसके लिए आप विशुद्ध नारियल तेल की बालों पर मालिश भी कर सकते है। इससे भी रसायनिक रंगों से बालों को होने वाले नुकसान को बचाया जा सकता है।
होली के रंगों से नाखूनों को बचानें के लिए नाखूनों पर नेल वार्निश की मालिश करनी चाहिए। होली खेलने के बाद त्वचा तथा बालों पर जमें रंगों को हटाना काफी मुश्किल कार्य है। उसके लिए सबसे पहले चेहरे को बार-बार साफ निर्मल जल से धोएं तथा इसके बाद कलीजिंग क्रीम या लोशन का लेप कर लें तथा कुछ समय बाद इसे गीले काटन वूल से धो डाले। आंखों के इर्द गिर्द के क्षेत्र को हल्के-हल्के साफ करना न भूलें। क्लीजिंग जैल से चेहरे पर जमें रंगों को धुलने तथा हटाने में काफी मदद मिलती है। अपना घरेलू क्लीनजर बनाने के लिए आधा कप ठण्डे दूध में तिल, जैतून, सूर्यमुखी या कोई भी वनस्पति तेल मिला लीजिए। काटन वूल पैड को इस मिश्रण में डूबोकर त्वचा को साफ करने के लिए उपयोग में लाऐं। शरीर से रसायनिक रंगों को हटाने में तिल के तेल की मालिश महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इससे न केवल रसायनिक रंग हट जाऐंगे बल्कि त्वचा को अतिरिक्त सुरक्षा भी मिलेगी। 
तिल के तेल की मालिश से सूर्य की किरणों से हुए नुकसान की भरपाई में मदद मिलती है। नहाते समय शरीर को लूफ या वाश कपड़े की मदद से स्क्रब कीजिए तथा नहाने के तत्काल बाद शरीर तथा चेहरे पर माइस्चराईजर का उपयोग कीजिए। इससे शरीर में नमी बनाए रखने में मदद मिलेगी।
यदि त्वचा में खुजली हेै तो पानी के मग में दो चम्मच सिरका मिलाकर उसे त्वचा पर उपयोग करें तथा इससे खुजली खत्म हो जाऐगी। इसके बाद भी त्वचा में खुजली जारी रहती है तथा त्वचा पर लाल चकत्ते तथा दाने उभर आते है तो आपकी त्वचा को रंगों से एलर्जी हो गई तथा इसके लिए आपको डाक्टर से आवश्यक सलाह मशवरा जरूर कर लेना चाहिए। बालों को साफ करने के लिए बालों में फंसे सुखे रंगों तथा माईका को हटाने के लिए बालों को बार-बार सादे ताजे पानी से धोते रहिए। इसके बाद बालों को हल्के हर्बल शैम्पू से धोएं तथा उंगलियों की मदद से शैम्पू को पूरे सिर पर फैला लें तथा इसे पूरी तरह लगाने के बाद पानी से अच्छी तरह धो डालिए।
बालों की अंतिम धुलाई के लिए बियर को अन्तिम हथियार के रूप में प्रयोग  किया जा सकता है। बीयर में नीबूं का जूस मिलाकर शैम्पू के बाद सिर पर उडेल लें। इसे कुछ मिनट बालों पर लगा रहने के बाद साफ पानी से धो डालें।
होली के अगले दिन दो चम्मच शहद को आधा कप दही में मिलाकर थोड़ी सी हल्दी में मिलाए तथा इस मिश्रण को चेहरे, बाजू तथा सभी खुले अंगों पर लगा लें। इसे 20 मिनट लगा रहने दें तथा बाद में साफ ताजे पानी से धो डालें।  इससे त्वचा से कालापन हट जाएगा तथा त्वचा मुलायम हो जाएगी। होली के अगले दिनों के दौरान अपनी त्वचा तथा बालों को पोषाहार तत्वों की पूर्ति करें। एक चम्मच शुद्ध नारियल तेल में एक चम्मच अरण्डी का तेल मिलाकर इसे गर्म करके अपने बालों पर लगा लीजिए। एक तौलिए को गर्म पानी में भीगों कर पानी को निचोड दीजिए तथा तौलिए को सिर पर लपेट लीजिए तथा इसे 5 मिनट तक पगड़ी की तरह सिर पर बंधा रहने दीजिए। इस प्रक्रिया को 4-5 बार दोहराईए इसे खोपड़ी पर तेल को जमने में मदद मिलती है। एक घण्टा बाद बालों को साफ ताजे पानी से धो डालिए।
 
लेखिका – अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सौंदर्य विशेषज्ञ है तथा हर्बल क्वीन के नाम से लोकप्रिय है।
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संयुक्त परिवारों की सुंदरता https://apnidilli.com/17765/ Mon, 28 Feb 2022 07:17:14 +0000 http://apnidilli.com/?p=17765 हर परिवार के अपने नियम और कानून होते हैं जिसके हिसाब से उस घर के सदस्यों को अपना जीवन व्यतीत करना होता है। नियम बनाने का तात्पर्य यह नहीं है कि घर के सदस्यों को किन्हीं बेड़ियों में जकड़ा जाता है। नियम और कानून इसलिए बनाए जाते हैं ताकि घर के सभी सदस्यों में आपसी तालमेल बना रहे और बिना किसी दिक्कत परेशानी के जीवन आगे बढ़ता रहे।
संयुक्त परिवार के नियम एकल परिवार के नियमों से थोड़े हटकर हो सकते हैं क्योंकि वहां सदस्यों की संख्या ज्यादा होने पर आपसी मतभेद होने के चांस भी एकल परिवारों की तुलना में ज्यादा हो सकते हैं।
 परंतु यदि बात संयुक्त परिवार से एकल परिवार में आकर रहने की होती है तो मुझे नहीं लगता कि कुछ मामूली सी परेशानियों को छोड़कर किसी को भी बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हो। परिपक्वता भी तो कोई चीज होती है।एक परिवार से दूसरे परिवार में आने के बाद व्यक्ति स्वयं को वहां के अनुसार ढाल लेता है। हां ,यह अवश्य है कि उसे नए माहौल में ढलने में कुछ समय अवश्य लगता है जहां पहले उसे गिने-चुने चार या पांच लोगों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता था, वहीं अब संयुक्त परिवार में आने के पश्चात सदस्यों की संख्या ज्यादा होने की वजह से उसे समन्वय स्थापित करने के लिए अधिक आत्मविश्वास, सहनशीलता और व्यापक दृष्टिकोण और बुद्धिमता की आवश्यकता पड़ती है।
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि बच्चे केवल इन सब छोटी मोटी दिक्कत और परेशानियों की वजह से अलग रहना चाहते हैं।व्यक्तिगत स्वतंत्रता सभी को अच्छी लगती है परंतु व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अपने कुछ नुकसान भी हैं जिन्हें आज की जनरेशन के बच्चे भी भली प्रकार समझने लगे हैं और यही वजह है कि अब एक बार फिर से एकल परिवारों का स्थान संयुक्त परिवार लेने लगे हैं ।
आज की पीढ़ी के बच्चे भी चाहते हैं कि वे अपने सभी रिश्तों जैसे चाचा ,ताऊ और कजिंस वाले परिवार में रहें ,मस्ती करें,विभिन्न पारिवारिक मौकों को मिलकर सेलिब्रेट करें और इन सब के लिए वे काफी चीजों में समर्पण का भाव रखने से भी पीछे नहीं हटते हैं,और बस यही सुंदरता है संयुक्त परिवार की।
पिंकी सिंघल
अध्यापिका-शालीमार बाग, दिल्ली
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चित्र आधारित लघु कथा ‘युद्धों का परिणाम’ https://apnidilli.com/17762/ Mon, 28 Feb 2022 07:10:47 +0000 http://apnidilli.com/?p=17762 रानी: मां,मां,देखो वो लोग शायद हमारी तरफ़ ही आ रहे हैं।

राम्या: बिटिया,डरो मत,तेरे बापू तो धर्म की भेंट चढ़ ही चुके हैं, अब हमारे पास खोने के लिए बचा ही क्या है।
रानी: मां,अगर उन्होंने छोटू के हाथ से ये रोटी छीन ली तो,मेरा भाई भूख से बिलबिलाएगा।
राम्या: बिटिया,ये लोग हमसे हमारा सब कुछ छीन सकते हैं,परंतु हमारे हाथों पर खींची लकीरों को नहीं।
रानी: मां,मैं कुछ समझी नहीं।
राम्या: बिटिया हमारे हाथों की लकीरें हमारी किस्मत से जुड़ी होती हैं,और हमारी किस्मत ऊपर वाले ने लिखी है जिसे कोई मनुष्य नहीं बदल सकता।इसलिए घबराओ मत।
रानी: हां मां, ऊपर वाला ही अब इस युद्ध के माहौल में हमारे खाने,रहने और सुरक्षा का ख्याल रखेगा।
राम्या: हां,बिटिया!!
पिंकी सिंघल
शालीमार बाग दिल्ली
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नहीं रहीं लता दीदी https://apnidilli.com/17623/ Mon, 07 Feb 2022 10:16:45 +0000 http://apnidilli.com/?p=17623 *सुरों की सरगम की थीं हर लय की आवाज़*
*तुम से ही तो बुलंद थी संगीत की परवाज़*
सुरों की साम्राज्ञी ,हर दिल अज़ीज़, हिंदुस्तान की पहचान और अपनी मधुर आवाज से हर किसी को दीवाना बना देने वाली महान शख्सियत स्वर कोकिला लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं रहीं। लता मंगेशकर का वास्तविक नाम हेमा मंगेशकर था। उनका जन्म 28 सितंबर 1929 में इंदौर में हुआ था। लता दीदी के यूं हम सब को छोड़ जाने के बाद एक युग का अंत हुआ है। सुर कोकिला अपने संगीत के माध्यम से पूरे विश्व के बीच सदैव जीवित रहेंगी, उनकी आवाज हमारे दिलों को ऐसे ही धड़काती रहेगी।
92 साल की लता मंगेशकर ने 6 फरवरी 2022 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली जहां वह पिछले 28 दिन से दाखिल थीं। लीजेंडरी सिंगर लता जी ने आखिर कोविड के सामने हिम्मत हार ही दी और हम सब को सदा सदा के लिए रोता छोड़ परलोक गमन कर गई।उनके निधन से पूरा बॉलीवुड जगत सदमे में है। देश के प्रधानमंत्री समेत अनेक दिग्गजों ने महान गायिका लता मंगेशकर जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।
उनके निधन से ना केवल भारत अपितु पूरे विश्व में शोक की लहर दौड़ गई है ।बॉलीवुड में उनका निधन एक अपूरणीय क्षति बताया जा रहा है। कोरोना होने के साथ-साथ उन्हें निमोनिया की शिकायत भी हो गई थी जिसकी वजह से उनकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी और 6 फरवरी 2022 रविवार की सुबह उन्होंने अपनी अंतिम सांसे लीं।
उनके करियर और जीवन से संबंधित बातें करें तो लता मंगेशकर भारत की सबसे अधिक लोकप्रिय गायिका रही जिन्हें भारत सरकार की तरफ से भारत रत्न दिया गया। उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर खुद को संगीत को समर्पित कर रखा था ।उनके पिताजी का नाम दीनानाथ मंगेशकर था जो स्वयं एक कुशल रंगमंच के गायक थे। उनसे ही लता जी ने संगीत की शिक्षा ली। उनके परिवार में लता जी की बहनें आशा ,उषा और मीना भी संगीत सिखा करती थी।
सत्य है कि प्रत्येक सफल इंसान को जीवन में अनेक संघर्षों से गुजरना पड़ता है ।ऐसा ही लता जी के साथ भी हुआ। बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने के लिए लता जी को भी बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ा,बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी, परंतु अपनी लगन, मेहनत और प्रतिभा के दम पर उन्होंने कामयाबी हासिल की।
लता मंगेशकर को राष्ट्र की आवाज, सेहराबदी की आवाज ,भारत कोकिला, स्वर साम्राज्ञी आदि नामों से भी जाना जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो लता मंगेशकर एक मैजिक वॉइस है जिन्होंने 30000 से भी ज्यादा गाने गाए।
अपने पिता की मृत्यु के बाद लता मंगेशकर ने ही अपने सभी छोटे भाई बहनों को संभाला, और घर की सारी जिम्मेदारी निभाई। 1945 में लता जी मुंबई आ गई। 1949 में उन्होंने अनेक हिट फिल्मों में गाने गाए और यहां से शुरू हुआ उनका सुहाना सफर।लता जी को सर्वाधिक गीत रिकॉर्ड करने का भी गौरव प्राप्त है। फिल्मी और गैर फिल्मी दोनों ही प्रकार के गाना गाने में लता जी को महारत हासिल थी फिल्मी जगत में उनकी एक अनूठी पहचान बनी हुई थी जो उनके चले जाने के बाद भी ऐसी ही रहने वाली है। उनके प्रशंसकों की संख्या अनगिनत है।उन्होंने अनेक प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया और सभी ने उनकी प्रतिभा को खूब सराहा। इनकी सुरीली आवाज की वजह से ही सैंकड़ों फिल्में ने खूब कमाई की। इनमें से कुछ फिल्में थी ,महल, बरसात ,बड़ी बहन ।
ओ सजना बरखा बहार आई जैसे गीतों से सबका दिल जीतने वाली लता दीदी की जितनी तारीफ की जाए कम ही है ।हर गीत में अपनी आवाज के जादू से जीवंतता भरने वाली लता जी ने युगल गीत भी गाएं हैं ।देशभक्ति गीत गाने में तो लताजी का कोई सानी ही नहीं है, “ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी” देश भक्ति गीत को सुनकर शायद ही ऐसा कोई जन होगा जिसकी आंखों से आंसू न बह निकले इस गाने को सुनकर सब अति भाव विभोर हो जाते हैं।
 कुछ प्रसिद्ध फिल्मों के गानों में लता जी की आवाज ने अपना जादू बिखेरा। इन फिल्मों में अनारकली, राम लखन हिना, नागिन ,बरसात, सत्यम शिवम सुंदरम,मुगले आज़म, अमर प्रेम ,गाइड ,प्रेम रोग इत्यादि हैं।लता जी ने गीत ,भजन ,संगीत के हर क्षेत्र में अपनी कला का प्रदर्शन किया है ।कोई भी गीत चाहे वह शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो अथवा पाश्चात्य धुन पर हर गीत को लता जी की आवाज से जीवंतता मिलती थी और जिसके जादू से श्रोता उनकी ओर खींचे चले जाते थे।
 पुरस्कारों की गिनती की बात करें तो लता जी को ना जाने कितने ही अवार्ड मिले। 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड लता जी के नाम है ।भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न 2001 लताजी को दिया गया ।इसके अलावा पद्म भूषण,पद्म विभूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, राजीव गांधी पुरस्कार, नूरजहां पुरस्कार ,महाराष्ट्र भूषण इस तरह के ना जाने कितने ही पुरस्कार दीदी ने अपने नाम किए हैं। उन का सबसे बड़ा पुरस्कार यही था कि उन्होंने न केवल पुरुस्कार जीते अपितु  परलोक गमन के बाद भी हम सभी के दिलों में सदैव जीवित रहेंगी इससे बढ़कर पुरस्कार शायद ही किसी के जीवन में कोई अन्य होता हो।
उनके गाए हुए कुछ पसंदीदा गाने इस प्रकार हैं, हमको हमी से चुरा लो, ऐसा देश है मेरा, हो गया है तुझको तो प्यार सजना ,दुश्मन ना करे दोस्त ने वो काम किया है, ऐ मालिक तेरे बंदे हम ,प्यार हुआ इकरार हुआ ,आयेगा आयेगा आयेगा आनेवाला, मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं ,कबूतर जा जा जा ,सुन साहिबा सुन, दीदी तेरा देवर दीवाना ,दिल तो पागल है, मेरे ख्वाबों में जो आए ,पंख होते तो उड़ जाती रे ,आ लौट के आजा मेरे मीत ,जिंदगी उसी की है, मन डोले मेरा तन डोले ,प्यार किया तो डरना क्या आदि आदि।
जीवन का अंत तो सभी का होता है परंतु चांद सूरज जैसा बनकर कोई कोई कोई चमकता है लता दीदी उन्हीं चांद तारों जैसी हैं जो सदा सदा संगीत और सुरों के फलक पर चमकती रहेंगी और हम सब को सदैव प्रेरित करती रहेंगी।
*जहां भी जाएगा रोशनी लुटाएगा*
*किसी चिराग का कोई मकान नहीं होता*
पिंकी सिंघल
अध्यापिका
शालीमार बाग दिल्ली
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लाख तरक्की के बावजूद हम बुजुर्गों का ख्याल रखने में पीछे हैं :  अतुल मलिकराम https://apnidilli.com/15961/ Wed, 14 Jul 2021 12:06:41 +0000 http://apnidilli.com/?p=15961 बुढ़ापा किसी व्यक्ति की उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है, जिसमें प्रवेश करने के बाद उसके जीवन में एक बार फिर से बचपन दस्तक देता है। वही बचपन, जिसके लिए हम कहते हैं कि यह एक बार चला गया, तो फिर कभी लौटकर नहीं आएगा। वृद्धावस्था में बचपन का पुनः आगमन वास्तव में अद्भुत और अतुलनीय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुजुर्ग व्यक्ति का स्वभाव एक बच्चे की तरह ही होता है, छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढने की आदत और भावनाओं का गहरा सागर, बड़े-बूढ़ों के दिलों में एक बच्चे की तरह ही उमड़ता है। जिस तरह एक छोटे बच्चे को हर क्षण अपनी माता के आँचल और पिता के साए से घिरे रहना बेहद लुभाता है, ठीक इसी प्रकार बुजुर्गों को भी अपने बच्चों को अपने आसपास हँसते-खेलते देख उत्तम आनंद की अनुभूति होती है। वे उम्र के इस अद्भुत पड़ाव में अपनों का प्यार और साथ चाहते हैं। इसलिए उनके साथ बैठकर भोजन करें, उनके साथ टहलने जाएं, उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखें, उन्हें क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ें, उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखें, उन्हें आश्वासन दें कि हर एक स्थिति में आप उनके साथ हैं।
हम आए दिन विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की कर रहे हैं, लेकिन सत्य यह है कि इन सबके बावजूद हम बुजुर्गों का ख्याल रखने में काफी पीछे हैं। जिन्होंने हमें ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया, हमारी टूटी-फूटी बोली से जो जग जीत जाया करते थे, जिनकी गोद में हम पले-बढ़े, जिनकी आँचल की छाँव ने हम पर कभी दुःख रूपी धूप का साया तक नहीं पड़ने दिया, जिनके कांधों पर बैठकर हम दुनिया की सैर कर आते थे, जो खुद सारी रात जागकर हमें लोरियाँ सुनाते रहे, ताकि हम चैन की नींद सो सकें, जिन्होंने हमारे भीतर संस्कारों की मजबूत नींव गढ़ी, क्या हम उनके इन उपकारों को वास्तव में नजर अंदाज करने का विचार भी अपने मन में ला सकते हैं? अपने जीवन के अंतिम दौर में वे हमसे क्या चाहते हैं? सिर्फ परिवार का साथ। है न!! लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम उनसे उनका बचपन और बुढ़ापा दोनों छीन रहे हैं। भले ही हमारा उद्देश्य नकारात्मक न हो, लेकिन कमाने की होड़ में हम घर की बुनियाद हिलाकर यानी बुजुर्गों का साथ छोड़कर एकल परिवार की नींव गढ़ रहे हैं, हम पूरे परिवार को जाने-अनजाने में तोड़ने का कारण बन रहे हैं, उनसे उनके सबसे अच्छे और सच्चे दोस्त, उनके नाती-पोते छीनने की वजह बन रहे हैं। दादी-नानी की कहानियां भी अब इस वजह से विलुप्त होती नजर आ रही हैं।
कारण कुछ भी हो, लेकिन यह सत्य है कि बीते कुछ वर्षों में एकल परिवार का चलन काफी तेजी से बढ़ा है, ऐसे में बच्चे और बुजुर्ग दोनों ही एक-दूसरे के प्यार से वंचित हो रहे हैं। बहुत कम ही परिवार बचे हैं, जो बुजुर्गों के आशीर्वाद से फलीभूत हैं। क्या वास्तव में बुजुर्गों के आशीर्वाद के बिना हमारे जीवन के कुछ मायने हैं? बदलते जमाने के साथ आज कई बुजुर्ग अपने अंतिम दिन वृद्धाश्रम में गुजारने को मजबूर हो चले हैं। क्या उन्हें ठेस पहुँचाकर हम भविष्य में खुश रह पाएंगे? यह कतई न भूलें, कि आज हमारे द्वारा किए गए कर्म कल हमें ढूंढते हुए जरूर हमारे सामने आएँगे। मंदिरों में भारी मात्रा में दिया गया चढ़ावा और नित दिन भी यदि हम दान-धर्म करें, तो हमें इसके लिए धूल के कण बराबर भी पुण्य फल प्राप्त नहीं होगा, यदि हम माता-पिता को पूजने में असमर्थ हैं, क्योंकि शास्त्रों में भी माता-पिता को भगवान् का स्थान दिया गया है। इसलिए स्वयं से पहले उनका ख्याल रखें और उनके बुढ़ापे का सहारा बनें। जिनके सिर पर बुजुर्गों का हाथ है, सही मायने में वे ही दुनिया के सबसे धनी और सफल व्यक्ति हैं।
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