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अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति द्वारा ज्योति कलश कवि सम्मेलन का आयोजन

नई दिल्ली। साहित्य, कला और संस्कृति को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय संस्था अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति ने दीपावली के शुभ अवसर पर ज्योति कलश कवि सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से आए कवि और कवयत्रियों ने शानदार कविता पाठ किया। दमोह, मध्य प्रदेश से आईं डॉक्टर प्रेम लता नीलम ने सरस्वती वंदना कर कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली के कवि ब्रह्म देव शर्मा ने अपनी कविता पढ़ते हुए यह कामना की-
उजाला जहां में सभी को मिले
होंदिये को जलाने के हों सिलसिले
दिलों में मुहव्वत उगाएं सभी
मिटे आपसी द्वेष, शिकवे, गिले।
क्रम को आगे बढ़ाते हुए बुंदेलखंडी और हिंदी की लोकप्रिय कवयित्री मध्य प्रदेश दमोह से आईं डॉक्टर प्रेम लता नीलम ने कहा-
तुम्हारा प्यार मुझे वेद की ऋचायें है ।
कभी कम हो सके ना जो वे अर्चनायें हैं
चांद नभ पर है और चांदनी है धरती पर,
प्रीत की डोर से बंधी ये कामनाएं हैं ।
इसके बाद वापी गुजरात से आईं प्रतिष्ठित कवयित्री दीप्ति मिश्रा ने अपने काव्यपाठ को इन पंक्तियों से आगे बढाया-
ज्योति का हो पर्व शुभ, आलोकमय आभास का।
अब जलाना है हृदय में, दीप दृढ़ विश्वास का।
कार्यक्रम को और सारगर्भित बनाते हुए गुरुग्राम, हरियाणा से हरियाणा प्रदीप के संपादक महेश बंसल ने शानदार मुक्तकों के साथ कवि सम्मेलन को आगे बढ़ाया-
जो लिखते नहीं, नया इतिहास बनाते हैं,
जो भूले सपने, सबको याद दिलाते हैं।
अंधेरे में ठोकर, न लग जाये किसी को,
वो डगर में एक दीपक रोज जलाते हैं।
तथा इसी क्रम में उन्होंने आगे कहा कि-
दुआ करेंगे लोग
मैं रहूंगा किसी मंदिर में तो पूजा करेंगे लोग,
मैं रहूंगा किसी मस्जिद में तो सजदा करेंगे लोग।
ऐ खुदा तू मुझे बना दे चराग़ किसी मजार का,
रौशन होंगे रास्ते तो मेरे लिये दुआ करेंगे लोग
कोलकाता से वरिष्ठ साहित्यकार और कार्यक्रम अध्यक्ष सुरेश चौधरी ने दीपावली के महत्व को कुछ यूं बयां किया-
शुभ्र ज्योत्सना उत्सर्जित करती आयी दीपमालिका
पाप के तिमिर को द्युतित करती आयी दीपमालिका
दीप से द्युति का पूछ निकेत, दूर कर रहा तिमिर घोर
पथ जागृति का दिखा रही दीप श्रृंखलाएं, कर विभोर।
और फिर कवि सम्मेलन के अंत में अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के ग्लोबल अध्यक्ष प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव ने अपनी गज़़ल सुनाते हुए आज के आपसी रिश्तों पर कुछ इस तरह से तंज़ किया-
जिसने खंजर छुपाकर चलाया नहीं
दोस्ती करना उसको तो आया नहीं।
चापलूसी और मिथ्याचरण पर उन्होंने कहा कि-
अपनी नजऱों में खुद को गिराया नहीं
हमने जुगनू को सूरज बताया नहीं।
इसी क्रम में आत्मावलोकन के बिना दीपावली की निस्सारता पर उन्होंने कहा कि-
हमने दीपक तो बाहर जलाए मगर
मनके भीतर का दीपक जलाया नहीं।
खेल उसके लिए है ये दीपावली
जिसने अपने को दीपक बनाया नहीं।
दीपावली और भगवान श्री राम को याद करते हुए नीरव जी ने कहा कि-
वो अधूरी रही है कथा राम की
जिसमें वनवास का जिक्र आया नहीं।
उल्लेखनीय है कि दीपावली के त्योहार की व्यस्तता के बावजूद देश-विदेश के श्रोता बड़ी संख्या में इस कवि सम्मेलन से जुड़े और कार्यक्रम का अंत तक आनंद लिया।

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