रोबोट की सहायता से यमन के एक 24 साल के मरीज की आर्टिफिशियल पेशाब रोकने सर्जरी की
नई दिल्ली। रोबोट की सहायता से यमन के एक 24 साल के मरीज की आर्टिफिशियल पेशाब रोकने की सर्जरी बीएलके मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने की, जो जन्म से ही पेशाब में होने वाली गड़बड़ी से परेशान था। यह सर्जरी सफल रही और मरीज को डायपर ने निजात दिलाने में मददगार साबित हुई, जिसका इस्तेमाल वो काफी सालों से कर रहा था। बीएलके मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के यूरोलॉजी, एंड्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक डा. आदित्य प्रधान जिन्होंने इस मामले का नेतृत्व किया, ने कहा “इस रोगी को एक्स्ट्रोफी एपिस्पेडियास कॉम्प्लेक्स नाम की जन्मजात बीमारी थी। इस बीमारी में निचले पेट की दीवार बिल्कुल भी विकसित नहीं होती है, जिससे पेशाब की थैली खुली रहती है और खुले होने की वजह से बिना किसी कंट्रोल के पेशाब बाहर निकलता रहता है। इस बीमारी की रोकथाम और इलाज को सफल बनाने के लिए बचपन से ही कई प्रकार के ऑपरेशन करवाने की जरूरत होती है। पिछले बीते कई सालों में मरीज ने कम से कम 5 देशों में अपना 6 बड़ा ऑपरेशन करवाया है। हालांकि विदेशी डॉक्टरों ने पेट संबंधी और लिंग क्षेत्र को बंद करने में कामयाबी हासिल की, फिर भी मरीज का बार बार पेशाब पर कोई कंट्रोल नहीं रहा। इसलिए उसने लगातार डायपर का इस्तेमाल जारी रखा। वो चाहता था कि बिना पेशाब के लीकेज के डर के वो ड्राई महसूस कर सके और अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी को आसानी से जी सके”
दिल्ली आने के बाद भी उसने कई अस्पतालों और डॉक्टरों से सलाह ली। कई डॉक्टरों ने इस बात पर सहमति जताई कि, कई वर्षों से हो रही ओपन सर्जरी के माध्यम से पेरिनियम में एक आर्टिफिशियल पेशाब रोधक लगाना चाहिए। इस जन्मजात बीमारी की वजह से, लिंग में गड़बड़ी हो गयी थी और पेशाब जाने वाला रास्ता ऊपरी हिस्से के बहुत करीब था। तो अंडकोश के माध्यम से रोधक लगाने की प्रक्रिया के फेल होने का डर था। इसलिए फैसला किया गया कि पेशाब की थैली की गर्दन पर रोधक लगा दिया जाए और इस ऑपरेशन को रोबोट की मदद से अंजाम दिया जाए। इस तरह से पेट पर होने वाले कई कट से बचा जा सकता है, जिससे घाव के ठीक होने और आर्टिफिशियल रोधक के फेल का डर कम भी नहीं रह जाता है।
आर्टिफिशियल पेशाब रोधक को पेशाब की थैली में लगाने की सर्जरी बहुत कम और रिस्की होती है। जबकि इस डिवाइस को रोबोट की मदद से लगाने का बयान पहले विदेशों में कुछ केंद्रों में किया गया है, मगर भारत में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। ऑपरेशन सफल हुआ और एक छोटी सी चीरफाड़ होने की रोबोटिक प्रक्रिया की वजह से, मरीज को किसी तरह का कोई इंफेक्शन नहीं हुआ और न ही किसी तरह का कोई निशान पड़ा। लेकिन सबसे जरूरी बात ये है अब मरीज पूरी तरह ड्राई महसूस कर रहा है। सर्जरी के दो महीने बाद उसने कोई डायपर नहीं पहना और अब वो अपनी जिन्दगी में बहुत खुश है।