दर्शन मात्र से ही पापों से मुक्ति दिलवाते हैं गुहेश्वर महादेव
उज्जैन के पिशाचमोचन घाट पर स्थित गुहेश्वर दूसरे महादेव हैं। राथन्तर कल्प में देवदारु वन में मंकणक ऋषि तप कर रहे थे। एक समय उनके हाथ में कुश का कांटा लगने पर रक्त के स्थान पर शाक रस प्रवाहित होने लगा। यह देखकर मंकणक बहुत प्रसन्न हुए और नाचने लगे। उनके साथ यह चर-अचर संसार भी नाचने लगा। नदियों ने मार्ग बदल दिए। तब ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता शिव के पास गए तथा उनसे निवेदन किया कि इन महात्मा को नृत्य से रोको। तब शिव ब्राह्मण का रूप धरकर मंकणक के पास गए और समझाया-महाराज, नाचना स्त्रियों का काम है। आप ब्राह्मण हैं। आपका काम तप है, नाचना नहीं। तब ऋषि ने कहा-मैंने सिद्धि प्राप्त कर ली है। आप देखते नहीं। मेरी ऊंगली से रक्त नहीं, शाक रस गिर रहा है। तब शिव ने अपनी ऊंगलियां झटकारी और उनसे भस्म झडऩे लगी। इस पर ऋषि लज्जित हो गए। उन्होंने शिव को पहचान कर उन्हें प्रणाम किया। उनसे तप की वृद्धि का उपाय पूछा। शिवजी ने कहा-महाकाल वन में जाओ। वहां पिशाच मुक्तेश्वर के उत्तर में एक गुफा है। उसमें सात कल्प से एक शिवलिंग स्थित है। उसके दर्शन से तुम्हारे तप की वृद्धि होगी।
तब मंकणक वहां आए। उस शिवलिंग के दर्शन से उनको सूर्य के समान तेज प्राप्त हुआ। इस गुहेश्वर लिंग के अष्टमी और चौदश को दर्शन करने से पाप नष्ट होते हैं।