धर्म-कर्म

मुक्ति का मार्ग हैं त्रिविष्टपेश्वर महादेव

उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर परिवार में सातवें नम्बर के महादेव त्रिविष्टपेश्वर महादेव के रूप में विरोजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार वाराहकल्प में एक बार नारदजी भ्रमण करते स्वर्ग में पहुंचे। वहां इन्द्र के दर्शन किए। इन्द्र ने पूछा कि महाराज। महाकाल-वन का माहात्म्य कथन करो।
तब नारद जी ने बताया कि पृथ्वी पर नैमिष-तीर्थ सब पापों का नाश करता है। उससे दस गुना पुष्कर तीर्थ है। उससे गया कूप, कुरुक्षेत्र, वाराणसी क्रमश: दस-दस गुणा श्रेष्ठ हैं। उनसे भी दस गुना महाकाल वन है, जो तीनों लोकों का भूषण है।
नारद जी ने बतलाया कि वहां अनेक लिंग, शक्ति आदि निवास करते हैं। वहां मृत्यु होने पर मनुष्य, कीट, पतंग सभी को शिवलोक प्राप्त होता है। तब सब देवताओं के साथ इन्द्र अवन्तिकापुरी में आए। वहां के भवनों की शोभा देखी। तब देवताओं ने निश्चय किया कि वे यहीं निवास करेंगे, वापस, स्वर्ग नहीं जाएंगे। स्वर्ग खाली हो गया। तब स्वर्ग भी महाकाल वन में आ गया। तब आकाशवाणी हुई कि-हे त्रिविष्टप (स्वर्ग)। मुझे भी यहीं स्थापित करो। तब यहां त्रिविष्टपेश्वर की स्थापना की गई।
यह स्थान कर्कोटक (कोट मोहल्ला) के पूर्व में तथा महामाया के दक्षिण में है। अष्टमी, चतुर्दशी या संक्रांति पर जो उनकी पूजा करते हैं उन्हें स्वर्ग प्राप्त होता है। इसकी स्थापना के पश्चात त्रिविष्टप (स्वर्ग) पुन: अपने लोक को चला गया।

Translate »