धर्म-कर्म

स्वर्ग द्वारेश्वर महादेव, जिनके दर्शन मात्र से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है

उज्जैन के नलिया बाखल इलाके में स्वर्ग द्वारेश्वर महादेव के नाम से 9वें महादेव विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया। उन्होंने सब देवताओं को बुलाया परन्तु अपनी पुत्री सती और जामाता शिव को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी सती हठ करके अपने पिता के यज्ञ में गई। शिवजी ने उनके साथ वीरभद्र और अन्य कुछ गण भेजे। वहां किसी ने सती का आदर नहीं किया। तब सती ने योगाग्नि से अपने प्राण त्याग दिए। इस पर हाहाकार मच गया। तब शिव गणों ने यज्ञ का विध्वंस कर डाला। देवताओं को मारा। वीरभद्र ने इन्द्र को भाला मार दिया और उसके हाथी के मस्तक में घूसा माकर उसे मार डाला। तब देवता विष्णु के पास गए। विष्णु ने अपना चक्र चलाया। वीरभद्र मूर्छित हो गए। तब सब गण शिवजी के शरण में गए। शिवजी शूल लेकर दौड़े। उन्हें देखकर विष्णु अंतध्र्यान हो गए। तब शिवजी ने अपने गण को स्वर्ग के द्वार पर बैठा दिया और आज्ञा दी कि किसी भी देवता को स्वर्ग में प्रवेश न दिया जाय। तब देवता ब्रह्माजी के पास गए और अपना दुख प्रकट किया और कहा कि अब वे स्वर्ग के बिना कहां रहें? तब ब्रह्माजी ने कहा कि आप इन्द्र सहित शीघ्र शिवजी की शरण में जाओ। महाकाल वन में कपालेश्वर के पूर्व में स्वर्ग द्वार पर जो लिंग है, उसकी पूजा करो। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
तब इन्द्र इत्यादि देवता स्वर्ग द्वार पर स्थित लिंग के वहां आए। उसके दर्शन मात्र से उनके लिए स्वर्ग का द्वार खुल गया। देवता स्वर्ग को चले गए। शिवजी ने स्वर्ग द्वार स्थित अपने गण को हटा लिया। इसलिए इस लिंग को स्वर्ग द्वारेश्वर कहा जाने लगा। अष्टमी, चतुर्दशी और सोमवार को स्वर्ग द्वारेश्वर के दर्शन करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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