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हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा साहित्यिक नाट्य उत्सव ‘बस एक बार’ का मंचन का आयोजन

नई दिल्ली। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा हिंदी कथाओं के जन-जन में विस्तार हेतु साहित्यिक नाट्य उत्सव का आयोजन किया गया| नई दिल्ली के एल.टी.जी. सभागार में इस दौरान हरिदास व्यास द्वारा लिखित कहानी ‘बस एक बार’ का भी मंचन सविता शर्मा के निर्देशन में संपन्न हुआ|
कहानी के केन्द्र में राजस्थानी लोक-संसार रहा| कहानी कुछ इस प्राकर से थी कि राजस्थान के एक लोक गायक धुम्मा जिसकी पत्नी के पिंडलियों तक लंबे बालों की चर्चा पूरे गांव में है| घूंघट की परम्परा गाँव में कुछ इस प्रकार है कि पति भी पत्नी को जी भर नहीं देख पाटा है| इसी परम्परा से बंधी पत्नी के लंबे बालों को देखने की धुम्मा की हसरत पूरी नहीं हो पाती है| गाँव में अकाल पड़ता है और धुम्मा कुछ दूर बसे एक दूसरे गाँव में अपनी पत्नी के साथ शरण लेता है| जहाँ लेखक से उसकी मुलाकात होती है| लेखक जो 8 – 9 वर्ष की आयु में है उस लोक गायक की गायकी में गहरी रुचि लेता है| इसी बीच धुम्मा की पत्नी का स्नेह भी उस लेखक को पुत्रवत मिलता है| लेखक के प्रति पत्नी का पुत्रवत आपार स्नेह देखकर लोक गायक धुम्मा लेखक जोकि किशोरावस्था में है उससे इच्छा प्रकट करता है कि वह उसकी पत्नी के लंबे बाल उसे दिखवा दे| लेखक अपने धुम्मा काका से वादा करता है कि वह उनकी पत्नी के लंबे बाल उन्हें अवश्य दिखाएगा, परंतु शहर में पढ़ाई, पढ़ाई के बाद नौकरी, नौकरी के बाद शहर में ही पत्नी के साथ बस जाने और शहरीकरण के कारण अपने वचन को पूरा नहीं कर पाता| अंततः एक दिन वह जब शहर से लौट कर आता है तो धूम्मी काकी से उसकी मुलाकात होती है और उसे पता चलता है कि धुम्मा काका का कई वर्ष पहले निधन हो चुका है| जब लेखक बूढ़ी हो चुकी काकी के उड़ चुके बालों को देखता है तो आत्मग्लानि से भर उठता है|
कहानी का कथ्य समाज के एक अनछुए पक्ष को मजबूती के साथ उजागर करने में सक्षम है| इसके बावजूद पूरी कहानी को एक निश्चित अवधि में जी लेने का अवसर कहानी की नाट्य प्रस्तुति द्वारा ही संभव हो पाता है| संचार माध्यमों के हर स्तर पर फैलाव के बाद राजस्थानी संस्कृति से दुनिया का आज कोई भी कोना अनजाना हो ऐसा संभव नहीं है| गौरतलब यह है कि लोक संस्कृति जोकि मुख्य धारा की संस्कृति से ही जुड़ी होती है, फिर भी मुख्य संस्कृति के हाशिए पर प्रायः पाई जाती है| वहाँ आधुनिक संचार माध्यम कितना पहुंचे हैं यह अब भी एक बड़ा प्रश्न है| ऐसे में कलमकार हो या नाटककार वही कारगर साबित हो सकते हैं|
हिंदी अकादमी द्वारा आयोजित उत्सव की उपलब्धि यह रही कि एल.टी.जी. सभागार के मंच पर कथाकार और नाटककार दोनों एक हो गये| जिस कारण से एक सफल कहानी ‘बस एक बार’ में समाहित राजस्थानी लोक संस्कृति को आज के वैश्विक परिदृश्य में देखना-समझना और वह भी संवेदना के स्तर पर नाटक के माध्यम से स्वयं में समाहित करना उपस्थित दर्शकों द्वारा संभव हो पाया| सच में, आनंददायी अनुभव रहा|
आज के समय में जब नारी विमर्श के बहाने न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है| ऐसे में नाटक के कई दृश्य विशेष रूप से काकी से लेखक द्वारा धुम्मा काका की दबी रह गई इच्छा का उद्घाटन पुरुषों के भीतर की मर्यादित इच्छा को बड़े ही सलीके से दी गई नाट्य अभिव्यक्ति है|
कहानी का नाट्य रूपांतरण संदीपन विमल कांत नागर, प्रकाश सज्जा राघव प्रकाश मिश्र,
रूप सज्जा संदीप दमानिया एवं संगीत हबीब खान व रफीक खान द्वारा तैयार किया गया| कलाकारों के रूप में धुम्मा काका का सुधीर रिखारी, धुम्मी का कुमकुम जैन, मुखिया का अमरजीत अरोड़ा, लेखक बच्चा का ईशान शर्मा, लेखक किशोर का प्रखर जीत वर्मा एवं लेखक वयस्क का आशुतोष शुक्ला का प्रमुख योगदान रहा| इनके अतिरिक्त सहयोगी कलाकारों के रूप में शिखा गर्ग, रुचि अरोड़ा, शैली शर्मा, ईशा शर्मा, करण शारदा, आदर्श पुष्पम, राहुल बेनीवाल व प्रखर जीत वर्मा भी उपस्थित रहे|
निस्संदेह ‘बस एक बार’ का नाट्य-रूपान्तरण व्यक्ति और समाज के गहरे संबंध और उससे उपजी विसंगतियों को जीवंत अभिव्यक्ति देने में समर्थ रहा|

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