सब पापों को दूर करते हैं कुटुंबेश्वर महादेव
उज्जैन के सिंहपुरी क्षेत्र में स्थित कुटुंबेश्वर महादेव 84 महादेवों में 14वें नम्बर के महादेव हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय देवता और दानवों ने क्षीर समुद्र का मंथन किया। उससे विष उत्पन्न हुआ। विष की ज्वाला से देव दानव घबरा गए। वे शिवजी के पास गए। उनसे विष से रक्षा के लिए प्रार्थना की। तब शिवजी ने मोर का रूप धारण कर उस विष को अपने गले में धारण कर लिया। परंतु विष से वे भी घबरा गए। उन्होंने गंगा से कहा कि तुम इस विष को ले जाकर समुंद्र में प्रवाहित कर दो। परंतु गंगा ने मना कर दिया। तब यमुना, सरस्वती आदि नदियों से पूछने पर उन्होंने भी मना कर दिया। तब शिवजी ने शिप्रा से कहा कि तुम इस विष को ले जाकर महाकाल वन में कामेश्वर के सामने स्थिति लिंग में स्थापित कर दो।
क्षिप्रा ने वह विष लिया और उस लिंग में डाल दिया। विष के प्रभाव से जो भी प्राणी उसका दर्शन करता मृत्यु को प्राप्त हो जाता। वहां कुछ ब्राह्मण तीर्थयात्रा करने आए। उन्होंने उस लिंग के दर्शन किए और मर गए। तब हाहाकार मच गया। शिवजी ने उन ब्राह्मणों को पुनर्जीवित किया। तब उन ब्राह्मणों ने निवेदन किया कि भगवन इस लिंग के विष प्रभाव को दूर करो। तब शिवजी ने संसार के हित के लिए कहा-जब कायावरोहण से लकुलीश यहां आएंगे तब इसके विष का प्रभाव दूर हो जाएगा। फिर इसके दर्शन से कुटुंब की वृद्धि होगी और यह लिंग कुटुम्बेश्वर के नाम से जाना जाएगा। तब लकुलीश ने आकर इस लिंग के विष के प्रभाव को दूर किया। जो मनुष्य आश्विन महीने की शुक्ल पंचमी को इस लिंग का दर्शन करता है उसे पुत्र और धन धान्य प्राप्त होते हैं। इस लिंग के पास ही शिप्रा नदी और एक बावड़ी है। इस लिंग के दर्शन करने से सब पाप दूर होते हैं। रविवार, सोमवार, अष्टमी, चतुर्दशी को यहां शिप्रा में स्नान कर जो कुटुम्बेश्वर का दर्शन करता है उसे एक हजार राजसूर्य तथा सौ वाजपेय-यज्ञ का फल मिलता है।