केजरीवाल सरकार लोगों की जान की रक्षा करने में असफल साबित हुई है : आदेश गुप्ता
नई दिल्ली। कोरोना काल में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से उच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना की है उससे स्पष्ट है कि वे न तो जनता के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी निभाने को तैयार है और न ही उन्हे न्यायालय की परवाह है। दिल्ली जब वैश्विक महामारी में कराह रही थी तब मुख्यमंत्री केजरीवाल सिर्फ टीवी-अखबारों में दिखे। कोरोनाकाल में केजरीवाल सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं, अक्सीजन की भारी कमी, दवाइयों की कालाबाजारी, अस्पताल की खराब व्यवस्था और व्यवहार पर जितनी तीखी टिप्पणीयां की केजरीवाल सरकार ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। गर्त में जाती स्वास्थ्य व्यव्स्थाओं को देखते हुए उच्च न्यायालय ने एक बार नहीं बल्कि कई बार फटकार लगाकर जगाने की कोशिश की, लेकिन बार-बार हर मोर्चे पर केजरीवाल सरकार बेशर्मी से अपने हाथ खड़े कर दिए। चाहे वो ऑक्सीजन आपूर्ति में अव्यवस्था हो, आवश्यक स्वास्थ्य उपकरणों की कालाबाजारी हो, प्रवासी मजदूरों का पलायन हो, टेस्टिंग की घटती संख्या हो, जर्जर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा हो। इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार ने न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश की। उच्च न्यायालय ने केजरीवाल सरकार को जिन भी मुद्दो पर निर्देश दिए जिसे लागू कर बिगड़ते हालातों को सुधारा जा सकता था, लेकिन केजरीवाल ने सबकी अनदेखी की। प्रदेश कार्यालय में आज दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री आदेश गुप्ता, नेता प्रतिपक्ष श्री रामवीर सिंह बिधूड़ी और सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने संयुक्त प्रेसवार्ता को संबोधित किया। इस अवसर पर प्रदेश प्रवक्ता श्री शुभेन्द्रु शेखर अवस्थी उपस्थित थे।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री आदेश गुप्ता ने कहा कि उच्चतम और उच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना करना केजरीवाल की दिनचर्या बन चुकी है। संकट के दिनों में भी केजरीवाल सरकार अपने कारनामों से बाज नहीं आई। कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के कारण दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों जैसे बत्रा अस्पताल, सर गंगाराम अस्पताल और जयपुर गोल्डन अस्पताल में लगभग 57 मरीजों ने दम तोड़ दिया लेकिन, केजरीवाल सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन की कमी के कारण मरने वाले रोगियों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग की याचिका पर भी केजरीवाल को निर्देशित किया है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई भी कदम नहीं उठाया गया है। इतना ही नहीं उच्च न्यायालय ने केजरीवाल सरकार को केंद्र से आवंटन के बाद ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए स्वयं के क्रायोजेनिक टैंकरों की व्यवस्था पर, केंद्र सरकार द्वारा 8 ऑक्सीजन प्लांट आवंटित करने के बाद भी सिर्फ एक ही ऑक्सीजन प्लांट लगाने पर और मरीजों की संख्या बढ़ने के बावजूद शादियों में 200 लोगों को शामिल होने की अनुमति देने पर सवाल उठाया लेकिन राजनीति और कुर्सी प्रेमी केजरीवाल के कानों में जँू तक नहीं रेंगी। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने कड़े शब्दों में केजरीवाल सरकार को अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करने में विफल बताया और केजरीवाल सरकार सरकार के वकील ने खुद माना कि स्वास्थ्य व्यवस्था से लोगों का विश्वास डगमगा चुका है।
श्री आदेश गुप्ता ने कहा कि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि केजरीवाल सरकार के ही लोग ऑक्सीजन सिलेंडर, कंसंट्रेटर, दवाइयों, इंजेक्शन की कालाबाजारी में लिप्त थे और मुख्यमंत्री केजरीवाल उन्हें संरक्षण देने के लिए आर्टिफिशियल शोर्टेज का ढ़ोंग कर रहे थे। इतना ही नहीं उच्च न्यायालय ने 21 जनवरी 2021 को एमसीडी कर्मियों को सैलरी बजट मुहैया न कराने के लिए केजरीवाल सरकार फटकार लगाई और निर्देश दिया कि 2 हफ्ते के अंदर सैलरी दे दी जाए, लेकिन केजरीवाल सरकार की सोच देखिए कि कोरोना जैसी महामारी में अतिरिक्त सहायता पहुंचाने की जगह एमसीडी के 216 करोड़ रुपए पुराने ब्याज के काट लिए गए। उन्होंने कहा कि होम आइसोलेट होकर जो लोग अपना इलाज करा रहे थे उन्हें रेमडीसीवर जैसी इंजेक्शन को न देने के केजरीवाल सरकार के आदेश को उच्च न्यायालय ने काफी शर्मनाक बताया और जमकर फटकार लगाई। 27 अप्रैल को कोर्ट ने साफ कहा कि यह समय गिद्ध बनने का नहीं है और ना ही राजनीति करने का है क्योंकि केजरीवाल सरकार ना ही समय पर ऑक्सीजन दिला पाई और ना ही समय पर दवाइयां। जबकि अपनी हर गलती को केंद्र का बताने वाली केजरीवाल सरकार असफल होने के बाद केंद्र से ही सहायता की गुहार लगाती हुई नजर आई।
नेता प्रतिपक्ष श्री रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि कोरोना की पहली लहर के दौरान केजरीवाल सरकार ने डर और भय का माहौल पैदा कर प्रवासी, श्रमिक और दिहाड़ी मजदूरों को दिल्ली से भगाने के लिए हर हथकंडे अपनाए। केंद्र की ओर से मिलने वाले मुफ्त राशन से वंचित कर उन्हें पलायन करने पर मजबूर कर दिया। पिछले वर्ष के हालात को भांपते हुए उच्च न्यायालय ने इस वर्ष केजरीवाल सरकार को लॉकडाडन में प्रवासी मजदूरों के रहने, राशन, भोजन, कपड़े व दवा इत्यादि की व्यवस्था के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए पहले ही निर्देश दिए। फिर भी केजरीवाल सरकार प्रवासी मजदूरों का पलायन रोकने में असफल रही। संकट के समय जरूरतमंद मजदूरों को भोजन-राशन मुहैया कराने के लिए कई समाजसेवी संस्था, संगठन सामने आए लेकिन केजरीवाल सरकार भवन एवं अन्य निर्माण के तहत गठित बोर्ड श्रमिक (रोजगार का विनियमन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1996 के तहत बिल्डिंग सेस के हजारों करोड़ रुपए को जरूरतमंद मजदूरों के राशन, भोजन, कपड़े, दवा व मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया ।
श्री रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि जब दिल्ली में कोरोना चरम पर था तब केजरीवाल सरकार ने टेस्टिंग की संख्या कम कर दी, जिसने दिल्ली उच्च न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया। 30 अप्रैल, 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने टेस्टिंग आंकड़ों का जिक्र करते हुए केजरीवाल सरकार से सवाल किया “दिल्ली में कोविड-19 की टेस्टिंग में इतनी कमी क्यों आ गई है, वह भी ऐसे समय में जब कोरोना तेजी से अपने पैर पसार रहा है।“ आंकड़ों को देखें तो 15 अप्रैल को 98,957 और 20 अप्रैल को यह संख्या 78,767 पर आ गई। 25 अप्रैल को यह संख्या घटकर 57,690 हो गई। 21 अप्रैल से 25 अप्रैल के बीच औसत 70,000 टेस्ट हुए, 26 अप्रैल को केवल 57,690 टेस्ट ही हुए। मई में टेस्टिंग को घटा कर 50 प्रतिशत पर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत अपनी झूठी छवि को बरकरार रखने और वाहवाही लूटने के लिए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने टेस्टिंग की संख्या को कम करवाया। नतीजतन लोग संक्रमित होने पर भी टेस्ट नहीं करवा पाए और अपने घर और मोहल्ले में संक्रमण बढ़ने का कारण बने। जब तक उन्होंने टेस्ट करवाया तब तक वह गंभीर हालत में पहुंच चुके थे कि इलाज मिलने तक उनकी जान चली गई। फेलुदा टेस्टिंग को अभी तक केजरीवाल सरकार ने इस्तेमाल क्यों नहीं किया? मुख्यमंत्री केजरीवाल ने प्रतिदिन 1 लाख टेस्टिंग करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन एक दिन, एक लाख का आंकड़ा छूने के बाद फिर कभी उतनी टेस्टिंग नहीं की गई, और टेस्टिंग की संख्या में भी बढ़ोतरी अब भी नहीं की गई।
सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल देश के एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने यह कहा है कि केंद्र सरकार हमें काम नहीं करने देती और इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें कोर्ट से लगातार फटकार मिलती रही है। दिल्ली कोर्ट द्वारा कहा गया कि दिल्ली की स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा जर्जर हो चुकी है और दिल्ली चिकित्सकीय व्यवस्था का पर्दाफाश हो चुका है। बढ़ते हुए बेडों की संख्या पर कोर्ट ने कहा कि अगर पर्याप्त डॉक्टर नहीं है तो बेडों की संख्या बढ़ाने का क्या मतलब है? उन्होंने कहा कि केजरीवाल सरकार द्वारा एक और झूठ बोला गया कि केंद्र ने सिर्फ 54000 रेमडीसीवर दिया है जबकि 2,54000 रेमडीसीवर दिया गया। इस बात का खुलासा कोर्ट ने खुद किया। उन्होंने कहा कि जब लगातार कोर्ट की फटकार मिलने लगी तो केजरीवाल ने एक तरह का घुस देने का काम किया और कोर्ट के जज, अधिकारियों और उनके परिवार वालों को फाइव स्टार होटल में कोरोना इलाज करने के लिए व्यवस्था की जिसका खुद हाई कोर्ट के जज ने विरोध किया कि हमने तो कभी ऐसा करने को नहीं कहा। दिल्ली में जो व्यवस्था खड़ी करनी थी वह केजरीवाल सरकार ने नहीं की और जो सुविधा राज्य सरकार द्वारा लोगों को मिलनी चाहिए थी वह मिली ही नहीं। सरकार नदारद थी इसलिए जनता को मजबूरन कोर्ट जाना पड़ा क्योंकि सरकार को स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर ध्यान दिलाने के लिए इसके अलावा कोई चारा नहीं था।