मनोरंजन

‘निंदक नियरे राखिए’

प्रशान्त जैन ‘गांधरा’
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, जैन कान्फ्रेंस, नई दिल्ली

नदी को सागर तक पहुंचने में कई अवरोधों का सामना करना पड़ता है। बड़ी-बड़ी चट्टानें उसके मार्ग में आती हैं और रुकावट डालती हैं। इन अवरोधों से टकराकर नदी के प्रवाह में उत्तेजना जरूर होती है किन्तु वह अपने बहने की निरन्तरता को नहीं तोड़ती। अन्त में एक क्षण ऐसा आता है जब उन अवरोधों को अपने आप हट जाना या मिट जाना पड़ता है ।
ठीक इसी तरह मानव जीवन में भी अन्त तक अवरोधों का सामना करना पड़ता है। जितने उच्च लक्ष्य, कार्यक्रम होंगे उसी अनुपात में मनुष्य को विरोधों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए जीवन को संघर्षमय कहा गया है। कोई भी व्यक्ति अथवा समाज जब किसी महान लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है तो दूसरे लोग अकारण ही विरोध करने लगते हैं। उससे ईष्र्या करने लगते हैं उसके मार्ग में रुकावटें डालते हैं, उपहास करते हैं। प्रत्येक प्रगतिपोषक व्यक्ति को तो अवश्य ही अपने जीवन में इन तत्वों का सामना करना पड़ता है। किन्तु मनस्वी लोग इन विरोध, रुकावटों को ही अपनी प्रगति और सफलता की फसल के लिए खाद और पानी बना लेते हैं। वास्तव में कठिनाई और विरोध का अवसर आने पर ही मनुष्य के पराक्रम और आत्म-विश्वास का विकास होता है। विरोध उत्साहियों के उत्साह को कई गुना बढ़ा देता है।
इस तरह विरोधी वास्तव में हमारी सहायता ही करता है क्योंकि उससे हमारे गुणों का विकास होता है। हममें उत्साह और स्फूर्ति की वृद्धि होती है। कई बार लोग विरोध के सामने आत्म-समर्पण कर बैठते हैं। हार मान लेते हैं और आगे बढऩे के विचार ही छोड़ देते हैं। लेकिन यह मानसिक कमजोरी ही मानी जाएगी। प्रतिरोध को अनुकूलता में ढाल लेना एक महत्वपूर्ण सफलता है। जो इस सीमा को पार कर लेते हैं, वे जीवन में सफलता की मंजिल पार कर ही लेते हैं।
किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करते ही मनुष्य को दूसरे लोगों के उपहास का सामना करना पड़ता है। लोग कहने लगते हैं ‘अरे! यह क्या कर लेगा?’ बेकार दूसरों की नकल करता है। अपने पैर देखकर तो चलता नहीं आदि आदि। लोग व्यर्थ ही उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं। बार-बार टोकते हैं। तरह-तरह से उपहास करते हैं। इस तरह मनुष्य को अपने कार्य के आरम्भ में ही भारी विरोध का सामना करना पड़ता है और बहुत से दुर्बल मन वाले लोग यहीं हारकर बैठ जाते हैं। उनका संकल्प, उनकी आकांक्षाएं जन्म लेते ही मर जाती हैं।
यह भी देखा गया है कि जब दृढ़ संकल्पी व्यक्ति इस तरह के उपहास की परवाह न कर अपने प्रयत्न जारी रखते हैं तो प्रतिपक्षी लोग खुलकर विरोध करने लगते हैं। संकल्पित व्यक्ति के मार्ग में रुकावटें डालते हैं विघ्न उपस्थित करते हैं। उसके आचरण, चरित्र पर आक्षेप करने लगते हैं। उसके सहयोगियों को बहकाते-फुसलाते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उलटा सीधा कहते हैं। इस स्थिति में भी कई लोगों का धैर्य डगमगा जाता है और बहुत से लोग यहां आकर अपने पांव को पीछे हटा लेते हैं। तथा अपने लक्ष्य और शुभ कार्य को छोड़ बैठते हैं।
किन्तु मनस्वी लोग जब इस तरह के विरोधों की परवाह न कर एकाग्रता के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं और उनके अथक परिश्रम और लगन के कारण जब सफलता के आसार दीखने लगते हैं तो वे ही विरोधी, आलोचक अपनी सहानुभूति दिखलाने लगते हैं यहां तक कि वे लोग उनके साथ ही आ मिलते हैं। अधिकांश विचार विरोधी तो विरोध करना ही छोड़ देते हैं। इसलिए शुभ कार्यों में लगने वालेए उन्नति और विकास की ओर बढऩे वालों के समक्ष एक ही मार्ग है दृढ़ता के साथ अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर गतिशील रहना। एक बार लक्ष्य और उत्कृष्ट मार्ग का चुनाव कर फिर उस ओर निरन्तर आगे बढ़ते रहना कर्मवीर के लिए आवश्यक है।
मार्ग में क्या-क्या मिलता है, किन अवरोधों का सामना करना पड़ता है, क्या-क्या गुजरता है, इसकी परवाह किए बिना उपहास, विरोध, आक्षेपों को सहन करते हुए जो अन्त तक लगा रहता है वह अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त कर ही लेता है। इस तरह संघर्ष करते हुए सफलता न भी मिले तो अपने उद्देश्यपूर्ण लक्ष्य के लिए मर मिटना या असफल होना भी हारकर बैठ जाने से श्रेयस्कर है। वस्तुत: प्रयत्न के दौरान प्राप्त होने वाली असफलता सफलता का ही दूसरा स्वरूप है। उससे मिलने वाला आत्म-संतोष किसी बड़ी सफलता से कम नहीं होता।
विरोध और विघ्नों से निपटने का दूसरा मार्ग है विरोधियों से सीखना। समाज में संकीर्ण प्रकृति के लोग, परम्परा के अन्धानुयायी, कूपमण्डूक लोगों की कमी नहीं होती। इनका एक बड़ा वर्ग होता है। यही कारण है कि सदा से नवीन पथ को खोज निकालने वाले, प्रगति और विकास के उपासकों को इन लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है। ऐसे लोग व्यर्थ ही ईष्र्या, द्वेष या अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर सज्जनों के मार्ग में रोड़े अटकाते हैं, उन्हें भला-बुरा कहते हैं मजाक उड़ाते हैं। किन्तु इसका एक ही समाधान है ऐसे लोगों की दुष्प्रवृत्तियों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाय। उन्हें अपनी निम्नता को प्रकट करने दीजिए लेकिन आप अपनी सज्जनता और शालीनता न छोड़ें। अपने मार्ग पर अडिग रहें। ऐसे लोगों से उलझने में आपकी शक्ति व्यर्थ ही नष्ट होगी।
निहितार्थ यह है कि हम सभी प्रयत्नशील लोगों को सदैव आगे की ओर देखना चाहिए। वंचक आएंगे जाएंगे, सफलता मिलेगी, हो सकता है न भी मिले पर मुझे विश्वास है कि सत्प्रयास की ओर की गई हमारी यह यात्रा शुभ और मंगलदायी होगी।

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