राष्ट्रीय

ग्वालियर में  विकास के दुश्मन

ग्वालियर। ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में विकास के मसीहा हर समय अवतरित होते आये हैं लेकिन ग्वालियर का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है.आज भी ग्वालियर को विकास की भूख है,प्यास है.दरअसल ग्वालियर उदास है,उदास इसलिए की उसे दशकों से लगातार ठगा जा रहा है. ग्वालियर को विकास के नाम पर ठगने वाले विकास के मसीहा भी हैं और नौकरशाह भी .जो ग्वालियर के हैं वे नौकरशाहों की गोदी में बैठकर ग्वालियर को लूट रहे हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है विशेष क्षेत्र प्राधिकरण द्वारा विकसित किया जा रहा नया ग्वालियर चार दशक बाद भी विकसित नहीं हुआ और कोई 600  करोड़ रूपये की रकम पानी में बह गयी।
भारत में विकास को घुन लगने की कहानी अनूठी है और अगर आप अपने शहर के आसपास निगाह दौड़ाएं तो आपको भी ऐसी कहानियां नजर आ जाएँगी. चालीस साल पहले भाजपा के एक नेता शीतला सहाय ने ग्वालियर के आसपास पड़ी फालतू जमीन पर नया शहर बसाने का ख्वाब देखा ,उन्होंने ख्वाब ही नहीं देखा ,बल्कि उसमें रंग भरने के लिए गंभीर कोशिशें भी की,नतीजन इस नए शहर को बसाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन भी कर दिया.शीतला सहाय इस प्राधिकरण के पहले अध्यक्ष बने .ग्वालियर की बदनसीबी थी कि श्री सहाय की पार्टी की सत्ता ज्यादा दिन नहीं रही और उनका ख्वाब बिखरने लगा ,लेकिन सहाय ने हिम्मत नहीं हारी .वे भाजपा के ऐसे नेताओं में से एक थे जो अपने शहर के लिए दूसरे  दलों के नेताओं से भी मिलने-जुलने में परहेज नहीं करते थे .1984  में ग्वालियर से भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी बाजपेयी को लोकसभा चुनाव में हराकर ग्वालियर के विकास के मसीहा बने माधवराव सिंधिया से मिलकर सहाय ने अपने बिखरे हुए ख्वाब को संवारने की एक कोशिश फिर शुरू की।
उन दिनों संयोग से दिल्ली पर बढ़ते बोझ को घटाने और दिल्ली के रिहायशी इलाकों से कल-कारखाने हटाने की एक मुहिम चलाई गयी,इन कल कारखानों को विस्थापित करने के लिए केंद्र ने ‘काउंटर मेग्नेट प्रोजेक्ट  नाम की एक योजना बनाई .इस योजना में दिल्ली के आसपास के शहरों को शामिल किया गया और सोचा गया की वहां नए शहर बसाकर दिल्ली पर आबादी का बोझ कम किया जाये।
ग्वालियर के पास चूंकि नया शहर बसाने का सपना पहले से था इसलिए सहाय ने सिंधिया से मिलकर विशेष क्षेत्र प्राधिकरण की नए ग्वालियर की योजना को काउण्टर मेग्नेट योजना में शामिल करने के लिए पुरजोर कोशिश की और उसे कामयाबी भी मिली. नया ग्वालियर बसाने  के लिए तिघरा जलाशय क्षेत्र में तालाशी गयी जमीन पर अधोसंरचना विकास के लिए राज्य के साथ केंद्र से भी रकम कबाड़ने की कोशिशें की गयीं .लगभग सफेद हाथी बन चुके इस प्राधिकरण [साडा] को एक बार फिर सक्रिय किया गया।
नया शहर बसाने के लिए खोजी गयी 35 हजार हैक्टेयर जमीन को हासिल करने के लिए मुआवजा वितरण से लेकर उस जमीन पर सड़कें बिछाने,सीवर लाइन डालने,ट्रांसफार्मर लगाने ,वृक्षारोपण करने जैसे कामो पर साडा में आने वाले प्रशासकों और बाद में नामजद किये जाने वाले अध्यक्षों ने अब तक 600 करोड़ रूपये खर्च कर दिए ,लेकिन यहां नया शहर  नहीं बसाया जा सका .यहां भूखंड विकसित कर बेच दिए गए,रिहायशी मकान  बनाकर बेच दिए गए लेकिन मौके पर इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर कोई पहुंचा ही नहीं।
साडा का हर नया प्रशासक पुरानी सड़कों पर नयी सड़कें बनता गया,बिना आबादी के ट्रांसफार्मर लगवाता गया ,पेड़ लगवाता गया लेकिन सब कुछ हुआ कागजों पर और 600 करोड़ की रकम धीरे धीरे बहकर नौकरशाहों और नामजद अध्यक्षों की जेबों में जा पहुंची .भाजपा सरकार के ज़माने में जन्मा नए शहर का सपना भाजपा की ही सरकार में भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ गया,बीच में जितने दिनों तक प्रदेश में कांग्रेस कोई सरकार रही उसने भी वो ही सब किया जो दूसरी सरकारों ने किया.
विकास के इस ख्वाब को मरते हुए सभी ने देखा लेकिन बचने की कोशिश किसी ने नहीं की .माधवराव सिंधिया के बाद ग्वालियर के विकास की मसीहाई केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हिस्से में आई,लेकिन वे और ज्यादा निष्क्रिय मसीहा साबित हुए.उन्होंने इस साडा के अध्यक्ष पद पर अपने समर्थकों को बैठकर लम्बे समय तक सत्ता के सुख भोगने की छूट दी .यहां बिना आबादी के पानी की अप्पूर्ति का नाटक करने के लिए पानी की टंकी बनी,उसे भरने के लिए हर महीने 15 लाख की बिजली का खर्च किया.बिना आबादी के 450 ट्रांसफार्मर और हजारों बिजली के खम्भे लगा दिए गए ,जिनमें से अधिकाँश जंग खाकर टूट कर गिर पड़े ,लेकिन किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया.न साडा को बंद किया गया और न योजना का त्याग किया गया .
बीते दशकों में हर अध्यक्ष और प्रशासक ने यहां शैक्षणिक संसथान खोलने,आवासीय बस्तियां बसने,फिल्म सिटी बनाने और नया हवाई अड्डा बनाने के लिए फर्जी अनुबंध कर ग्वालियर की जनता की आँखों में खूब धूल  झौंकी .जबकि यहां मौके पर किसी ने कुछ नहीं किया.सिवाय पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर ऊंचे दरवाजे बनवाने या चौराहे विकसित करने के .जिस संस्थान की अपनी कोई आय नहीं है,जो संस्थान अपनी परिसम्पत्तियों को बेच नहीं पा रहा,जिस्मने कोई सरकारी प्रतिष्ठान जाने को तैयार नहीं हैं उसके नाम पर ये खेल जारी है।
मजे की बात ये है कि एक बार फिर ग्वालियर के विकास की मसीहाई लौट कर सिंधिया परिवार के चश्मे चिराग ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास आ गयी है ,लेकिन वे भी अपने दिवंगत पिता के नाम पर शुरू की गयी इस योजना से भ्रष्टाचार का घुन निकाल नहीं पा रहे हैं. निकाल भी नहीं सकते क्योंकि इस योजना में सिवाय जमीन के कुछ बचा ही नहीं है .ग्वालियर विशेष क्षेत्र प्राधिकरण की नए शहर की ये योजना प्रदेश में और देश में भ्र्ष्टाचार का अनुपम उदाहरण हैं .यहां यदि ईमानदारी से काम होता तो अब तक कम से कम छह हजार आवासीय भूखंड विकसित हो जाना चाहिए थे ,कम से कम छह सौ आवास बनकर तैयार ही नहीं हो जाना चाहिए थे बल्कि उन्हें आबाद भी हो जाना चाहिए था ,लेकिन जब यहां तक आने-जाने के साधन ही उपलब्ध कराये गए,इस योजना को किसी ने गंभीरता से लिया ही नहीं तो कुछ होता भी तो कैसे .
आज की तारीख में नए शहर का बिखरा हुआ ये ख्वाब दिली का बोझ तो उठा नहीं पाया उलटे सरकार पर और ग्वालियर की जनता पर बोझ बन गया है .सरकार अपने इस कुपोषित संसथान को न मार पा रही है और न जीवित ही रख पा रही है .नया शहर बसाने के लिए बनाये गए साडा पर सालों करोड़ों का खर्च केवल वेतन,भत्तों और पेट्रोल पर खर्च किया जा रहा है .बिना काम के इस प्राधिकरण में मनमानी भर्तियां हुईं सो अलग . .विकास के मसीहाओं को अपनी-अपनी कुर्सियों की पड़ी है .ग्वालियर शहर खुद आबादी के बढ़ते बोझ और उससे होने वाली समस्याओं के कारण कराह रहा है ,लेकिन कहीं कोई आशा की किरण नहीं दिखाई दे रहीं।

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