धर्म-कर्म

सभी पापों को दूर करते हैं ढुण्ढेश्वर महादेव

उज्जैन में राम सीढ़ी के पास ढुण्ढेश्वर महादेव चौरासी महादेवों में तीसरे महादेव हैं। कैलास पर्वत पर एक ढुण्ढ नामक गण था। एक समय वह इन्द्र के दरबार में गया। वहां रम्भा नाच रही थी। उसे देखकर उसने रम्भा पर एक पुष्प गुच्छ फेंक दिया। इन्द्र ने श्राप देकर उसे पृथ्वी पर पटक दिया। तब उसने विचार किया और महेन्द्र पर्वत, श्रीशैल, मलयाचल, विन्ध्याचल, पारियात्र आदि पर्वतों पर तप किया। वहां सिद्धि न मिलने पर गंगा, यमुना, चन्द्रभागा (चिनाब), वितस्ता (झेलम), नर्मदा, गोदावरी, भीमरथी (भीमा), कौशिकी (कोसी), शारदा, चम्बल आदि में स्नान किया तब भी उसे सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। तब आकाशवाणी हुई कि तुम महाकाल वन में जाओ। वहां पिशाच मुक्तेश्वर के पास स्थित शिवलिंग की पूजा करो। उससे तुम्हें पुन: गण का पद प्राप्त हो जाएगा।
ढुण्ढ ने महाकाल वन में आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिव ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा। उसने प्रार्थना की कि भगवन, इस शिवलिंग के पूजन से मनुष्यों के पाप दूर हों और यह शिवलिंग मेरे नाम पर प्रसिद्ध हो। इसके बाद वह अपने शिवलोक में चला गया।

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